भारत की जेनेटिक इंजीनियरिंग ऑपरेशन कमेटी (जीईएसी) ने जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सरसों की नई किस्म डीएमएच11 को फील्ड परीक्षण के लिए जारी किया है। इसके तहत व्यावसायिक रिलीज के पहले किसानों द्वारा बीज उत्पादन करना होगा।
इसे साल 2002 में तैयार किया गया था और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा करवाए प्लॉट स्तरीय परीक्षणों के बाद दावा किया गया कि यह कई स्थानीय प्रजातियों से 30% तक अधिक उत्पादन दे सकती है। इसे भारत की ‘पहली ट्रांसजेनिक खाद्य फसल’ माना जा रहा है।
भारत में तिलहन के रूप में सरसों प्रमुख फसल है। यह कम पानी में भी उगती है, लेकिन उत्पादकता में बीते कई दशकों से ठहराव देखा गया है। दूसरी और कई देशों में इसकी हाइब्रिड प्रजातियों से बेहतर उत्पादकता, तेल उत्पादन, बीमारियों से लड़ने की क्षमता हासिल हुई है।
सरसों परिवार में आने वाली राई से निकली यह हाइब्रिड प्रजातियां कई देशों में अपनाई गई हैं। कनाडा में 85%, यूरोप में 90% और चीन में 70% राई हाइब्रिड प्रजाति की ही होती है। भारत में डॉ. दीपक पेंटल और उनकी टीम ने 1983 में इस पर काम शुरू किया था।
नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेस के वैज्ञानिक के विजय राघवन ने बताया कि बार्नेस और बारस्टार आधारित हाइब्रिड राई का इस्तेमाल कनाडा में 1996, अमेरिका में 2002 और ऑस्ट्रेलिया में 2007 से हो रहा है। अकेले कनाडा ने 2013 में 70 लाख टन राई और इसका बना 23 लाख टन तेल का निर्यात किया। किसी पर दुष्प्रभाव की बात 1996 से अब तक सामने नहीं आई है। वहीं, भारत में भी डीएमएच11 से मनुष्य में एलर्जी, जहर पहुंचने या पर्यावरण को नुकसान के आकलन के लिए विस्तृत परीक्षण किए गए।
भारत ने 2021-22 में खाद्य तेल के आयात पर 1,899 करोड डॉलर खर्च किए थे। जीई सरसों से उत्पादन बढ़ाकर यह खर्च कम किया जा सकता है।
भारत ने इससे पहले जीएम बैंगन को व्यवसायिक उत्पादन के लिए जारी किया लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसे खेती और फसलों के लिए नुकसानदायक बताते हुए हुए रुकवा दिया। इस समय केवल जीएम तकनीक से विकसित कपास को ही अनुमति दी गई है।
जीन संवर्धित अभियांत्रिकी मूल्यांकन समिति (जीईएसी) की सिफारिश का विरोध शुरू हो गया है। किसान संगठनों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ ने इसे आत्मघाती बताते हुए सरकार से सिफारिश खारिज करने की मांग की है।
किसान संघ के महासचिव मोहिनीमोहन मिश्रा ने कहा, जीईएसी ने जीएम सरसों की गुणवत्ता और इसका पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया है। जरूरी वैज्ञानिक समीक्षा के अभाव में हड़बड़ी में यह सिफारिश की गई है। मिश्रा ने कहा, जीईएसी का यह फैसला अस्वीकार्य है। जरूरत पड़ने पर इस फैसले के खिलाफ आंदोलन करेंगे।
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