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टेढ़े-मेढ़े दांतों के इलाज के दौरान दांतों की सफाई की समस्या होगी दूर!

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्रोफेसर अजीत वी परिहार, प्रोफेसर टीपी चतुर्वेदी और साधना स्वराज सहित आईआईटी-बीएचयू के प्रोफेसर प्रलय मैथी और सुदीप्त सेनापति की पांच शोधकर्ताओं की टीम को भारत सरकार द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है।यह पेटेंट उनके एक खास नए ‘खोज’ पर नवीनतम विचार को लेकर दिया गया है।

 

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ताओं को 20 साल की अवधि के लिए पेटेंट दिया गया है। यह खोज टेढ़े-मेढ़े दातों के इलाज में इस्तेमाल करने के लिए नए adhesive (बॉन्डिंग मैटेरियल, चिपकाने वाला पदार्थ) को लेकर है। शोधकर्ता अब इस नए बॉन्डिंग पदार्थ को रोगियों के उपचार के लिए प्रयोग करने योग्य बनाने और इसे व्यावसायिक रूप से भी सुगम बनाने के लिए आगे के चरणों पर काम कर रहे हैं।

प्रो चतुर्वेदी ने बताया कि टेढ़े-मेढ़े दातों के इलाज के लिए ऑर्थोडोंटिक अलाइनिंग के बाद उत्पन्न होने वाली सबसे प्रमुख समस्याओं में से एक यह है कि उपचार के दौरान दातों को पूरी तरह से या ठीक तरह से साफ करने में परेशानी आती है। ऐसे में कई बार दांतों में सफेद धब्बे या कैविटी के बनने का खतरा हो जाता है। इस इलाज में जैसे-जैसे लोग आगे बढ़ते हैं, मुश्किलें बढ़ती हैं।

दरअसल, यह इलाज महीनों तक जारी रहता है, ऐसे में दांतों के भीतर और आसपास के सभी जगहों पर स्वच्छता बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इससे बैक्टीरिया का विकास होने का खतरा होगा है। इससे दांतों का नुकसान होता है और परिणामस्वरूप ये अपनी प्राकृतिक चमक या रंग भी देते हैं, भले ही उनका आकार अच्छा हो जाए।

प्रो चतुर्वेदी के अनुसार बीएचयू और आईआईटी-बीएचयू के शोधकर्ताओं ने इस चुनौती का एक नया समाधान निकाला है। उन्होंने एक ऐसी प्रक्रिया तैयार की है जिसके द्वारा दांत की सतह पर ब्रेसेस लगाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बॉन्डिंग मैटेरियल या एधेसिव उपयोग के दौरान एंटी-कैरीज गतिविधि (पुनः खनिजकरण क्षमता) को सुनिश्चित करेंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो यह दांतों पर कैल्शियम व फॉसफोरस की उपस्थिति सुनिश्चित करेगा।

प्रो चतुर्वेदी के अनुसार दांतों की लंबी उम्र के लिए इलाज से ज्यादा उस पर सफेद दाग की रोकथाम जरूरी है। इसलिए बायोकम्पैटिबल रेजिन में बायोएक्टिव ग्लास (बीएजी) के मेल से ऑर्थोडोंटिक ब्रैकेट के आस-पास के जगहों में सीए 2+ और पीओ 3-आयन (कैल्शियम और फास्फोरस) को रिलीज करने पर वह प्रारंभिक घावों की सक्रिय रूप से रक्षा करता है। रिलीज हुआ Ca 2+ और PO 4 3- आयन दातों के इनामेल (दांत का ऊपरी पतला कवर) पर Ca-P की एक समान परत बनाता है। यह लेयर या परत जीवाणुरोधी की तरह काम करते हैं। इससे ओरल कैविटी का खतरा कम होता है और दातों क्षरण की संभावना कम हो जाती है।

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