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दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से जताई नाराजगी, कहा-अकेले ड्राइविंग करते समय मास्क अनिवार्य बेतुका आदेश

उच्च न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार के उस आदेश को बेतुका करार दिया जिसमें कोविड -19 के संदर्भ में अकेले ड्राइविंग करते समय मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया था। अदालत ने दिल्ली सरकार से पूछा कि यह निर्णय अभी भी लागू क्यों है, यह दिल्ली सरकार का आदेश है आप इसे वापस क्यों नहीं लेते। यह वास्तव में बेतुका है।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा आप अपनी कार में बैठे हैं और आपको मास्क पहनना चाहिए? पीठ ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा यह आदेश क्यों प्रचलित है? आप इस मुद्दे पर सरकार से जवाब लेकर इसे स्पष्ट करें।

पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब दिल्ली सरकार के वकील ने अपनी मां के साथ कार में बैठकर कॉफी पीते हुए मास्क नहीं पहनने के लिए एक व्यक्ति का चालान किए जाने की घटना को साझा किया।

सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के 7 अप्रैल 2021 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने निजी कार चलाते समय मास्क नहीं पहनने पर चालान लगाने के दिल्ली सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।

उन्होंने कहा कोई व्यक्ति कार में बैठा है और 2,000 रुपये का चालान किया जा रहा है। एकल न्यायाधीश का आदेश बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा जब डीडीएमए आदेश पारित किया गया था तो स्थिति अलग थी और अब महामारी लगभग खत्म हो गई है।

पीठ ने कहा प्रारंभिक आदेश दिल्ली सरकार द्वारा पारित किया गया था जिसे तब एकल न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी गई थी। मेहरा ने कहा कि यह दिल्ली सरकार या केंद्र सरकार का आदेश है यह एक बुरा आदेश है और इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि खंडपीठ को आदेश को रद्द करना चाहिए।

न्यायमूर्ति सांघी ने कहा कि वह केवल इस मुद्दे पर तभी विचार कर सकते हैं जब आदेश उसके सामने लाया जाएगा। पीठ ने कहा अगर वह आदेश खराब है तो आप उसे वापस क्यों नहीं ले लेते।

एकल न्यायाधीश का 2021 का आदेश वकीलों द्वारा चार याचिकाओं को खारिज करते हुए आया था, जिन्होंने निजी वाहन में अकेले ड्राइविंग करते समय मास्क नहीं पहनने के लिए चालान करने को चुनौती दी थी। अदालत ने कहा था कि निजी वाहन में अकेले ड्राइविंग करते समय मास्क पहनना कोविड-19 के संदर्भ में अनिवार्य है।

वकीलों ने अपनी दलीलों में तर्क दिया था कि जिन जिला मजिस्ट्रेटों को जुर्माना लगाने की शक्तियां निहित हैं वे दूसरों को शक्तियां उप-प्रत्यायोजित नहीं कर सकते हैं। इस तर्क से असहमति जताते हुए एकल न्यायाधीश ने कहा था कि अधिकृत व्यक्तियों% की परिभाषा समावेशी और प्रकृति में विस्तृत होने के कारण जिला मजिस्ट्रेटों को किसी भी अधिकारी को चालान जारी करने के लिए अधिकृत करने की शक्तियां भी निहित है।

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