देश में 10 अप्रैल से सभी वयस्कों के लिए सतर्कता यानी बूस्टर डोज लगवाने की अनुमति दे दी गई है, लेकिन अभी तक सिर्फ 4.64 लाख लोगों ने ही यह डोज लगवाई है। इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि डर, भ्रम और गलत जानकारी के चलते लोग सतर्कता डोज लगवाने से बच रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार सतर्कता डोज लगवाने में हिचक की मुख्य वजह प्रतिकूल प्रभाव का डर, कोरोना का मामूली संक्रमण होने की सोच और इस डोज के असर को लेकर मन में संशय है। विषाणु रोग विशेषज्ञ टी जैकब जान के मुताबिक, सतर्कता डोज को लेकर हिचक इसलिए भी है, क्योंकि नए विशेषज्ञों के दावे भ्रमित करने वाले हैं।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के सेंटर आफ एडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलाजी के पूर्व निदेशक जान ने कहा कि लंबे समय तक लोगों को बताया गया था कि पूर्ण टीकाकरण का मतलब दो डोज है, ऐसे में सतर्कता डोज शब्द ने भ्रम की स्थिति पैदा की है।
कोविशील्ड का उत्पादन करने वाले सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया (SII) के सीईओ अदार पूनावाला ने बीते हफ्ते कहा था कि उनके स्टाक में बड़ी संख्या में बिना बिके हुए टीके मौजूद हैं। कंपनी ने 31 दिसंबर से टीके का उत्पादन भी बंद कर दिया है। पूनावाला ने यह भी बताया था कि उन्होंने टीके मुफ्त में देने की पेशकश की है, लेकिन उस प्रस्ताव पर भी ज्यादा अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
इकरिस फार्मा नेटवर्क के सीईओ प्रवीण सीकरी की नजर में लोग सतर्कता डोज की जरूरत पर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि कोरोना संक्रमण की पिछली लहर ज्यादा घातक नहीं थी। उन्होंने कहा कि टीकाकरण विरोधी लोग टीका लगवाने से बच्चों का लिवर खराब होने, खून के थक्के जमने और लोगों की मौत होने जैसी झूठी खबरें फैला रहे हैं, जिससे लोगों में टीकाकरण को लेकर हिचक पैदा हो रही है।
सीकरी के मुताबिक टीकाकरण के प्रति हिचक दूर करने के लिए टीकों को लेकर ज्यादा संवाद किए जाने और लोगों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि लोगों को यह बताना आवश्यक है कि जिन देशों में पर्याप्त टीकाकरण नहीं हुआ है या जिनके पास ज्यादा प्रभावी टीके नहीं हैं, वे कोरोना से बेहद बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
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