द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद सोमवार यानी आज उन्हें भू-समाधि दी जाएगी।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती हिन्दू धर्म के सबसे बडे धर्म गुरु रहे हैं। आमतौर हिन्दू धर्म में किसी की मौत के बाद उन्हें जलाकर उनका अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन साधुओं का अंतिम संस्कार ऐसे नहीं किया जाता। उन्हें समाधि दी जाती है।
उनके लिए आमतौर पर भू-समाधि दी जाती है। इसके लिए एक गड्ढा खोदा जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर साधू-संतों को जलाया क्यों नहीं जाता और उन्हें भू-समाधि क्यों दी जाती है। आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब…
माना जाता है कि मौत के बाद भी साधू-संत का शरीर परोपकार करता रहता है। वहीं, शरीर को जलाने से किसी को लाभ नहीं होता। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। यही वजह है कि इनका अंतिम संस्कार करने के लिए जलाने की जगह जमीन या जल में समाधि दी जाती है।
अब सवाल उठता है कि ऐसा करने से क्या होगा और कैसे उनका शरीर परोपकारी साबित होगा? दरअसल, ऐसा करने की दो वजह हैं। पहली- जब जमीन या जल में संतों की समाधि दी जाती है तो उनका शरीर लाखों-करोड़ों जीवों का आहार बन जाता है। दूसरी- संतों को अग्नि का सीधेतौर पर स्पर्श करने की मनाही होती है। इसलिए इनका शरीर जमीन या जल में विलीन करने की परंपरा रही है।
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