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नवजोत सिंह सिद्धू को मिली एक साल का सजा, पुराने रोडरेज केस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई सजा

पूर्व क्रिकेटर और पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को देश की सर्वोच्च अदालत से बड़ा झटका लगा है। 1988 के रोडरेज केस में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू पर फैसला बदलते हुए अब उन्‍हें एक साल जेल की सजा सुनाई है।

 

पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने सिद्धू को गैर इरादतन हत्या में तीन साल कैद की सजा सुनाई थी जबकि सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादन हत्या में बरी कर दिया था।

क्या है मामला

रोडरेज का यह मामला साल 1988 का है जब पार्किंग को लेकर झगड़ा हुआ था जिसमें 65 साल के शख्स की मौत हो गई थी। मामला अदालत की चौखट पर पहुंच गया था जहां निचली अदालत ने 1999 में सिद्धू को बरी कर दिया था लेकिन पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने फैसला पलटते हुए सिद्धू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया। हाईकोर्ट ने सिद्धू को 3 साल की सजा सुनाई थी लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को बरी किया था। 2018 में SC ने 1,000 रुपये के जुर्माने बरी किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने 1 साल की सजा सुनाई है।

सुनवाई से ठीक पहले सिद्धू ने अपने वकील के जरिए कोर्ट से गुहार लगाई है कि उसे जेल भेजकर और सजा न दी जाए। सिद्धू ने अदालत से उनके विवादहीन राजनीतिक और खेल करियर, परोपकारी कार्यों, सामाजिक कल्याण, जरूरतमंदों की मदद को देखते हुए नरम रुख अपनाने का आग्रह किया।

1988 में क्या हुआ?

मामला दिसंबर 1988 में पटियाला निवासी गुरनाम सिंह की मौत से जुड़ा है, जब सिद्धू और एक दोस्त ने रोड रेज की घटना में उस पर हमला किया था। 27 दिसंबर, 1988 को सिद्धू और रूपिंदर सिंह संधू ने कथित तौर पर पटियाला में शेरनवाला गेट क्रॉसिंग के पास सड़क के बीच में अपनी जिप्सी खड़ी की थी। जब 65 वर्षीय गुरनाम सिंह एक कार में मौके पर पहुंचे, तो उन्होंने उन्हें एक तरफ हटने के लिए कहा। इसके बाद सिद्धू ने सिंह की पिटाई कर दी। उन्होंने कथित तौर पर भागने से पहले सिंह की कार की चाबियां भी फेंक दीं ताकि उन्हें मेडिकल हेल्प ना मिल सके।

सितंबर 1999 में, सिद्धू को हत्या से बरी कर दिया गया था, लेकिन दिसंबर 2006 में, पंजाब और हरियाणा HC ने उन दोनों को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया। साथ ही दोनों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। सिद्धू और संधू ने बाद में सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दी थी।

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