बिजली सेक्टर के समक्ष उत्पन्न कोयला संकट को दूर करने के लिए केंद्र सरकार पिछले एक महीने से राज्यों पर ज्यादा कोयला आयात का दबाव बना रही है।
वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की मांग इतनी ज्यादा है कि कोई भी राज्य आयात के लिए आगे आने को तैयार नहीं है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत 200 डालर प्रति टन के आसपास है, जो 2021 की औसत कीमत 49 डालर प्रति टन से तकरीबन चार गुना है।
केंद्र का कहना है कि 10 फीसद तक आयातित कोयला ब्लैंड करने से कीमत पर 30-40 पैसे का ही फर्क आएगा। लेकिन केंद्रीय बिजली मंत्रालय की सलाह पर राज्य सरकारें अमल करेंगी, इस बात की संभावना कम है। मार्च, 2022 में देश में कोयला संकट की आशंका देख बिजली मंत्रालय ने राज्यों से कहा था कि वे घरेलू कोयला में आयातित कोयले को 10 प्रतिशत तक मिश्रित करें। अभी तक तीन-चार राज्यों ने ही कोयला आयात का आर्डर किया है।
सूत्रों का कहना है कि अप्रैल में सिर्फ 17.5 लाख टन कोयला आयात किया गया। मई में 35 लाख टन कोयला आयात का आर्डर दिया गया है। राज्यों के बिजली संयंत्रों की क्षमता के मुताबिक 10 प्रतिशत आयातित कोयला मिश्रित करने के लिए 6.07 करोड़ टन कोयले की जरूरत होगी। सरकारी क्षेत्र की कंपनियां एनटीपीसी और डीवीसी ने कुछ नए आयात आर्डर दिए हैं लेकिन ये मानसून की जरूरत को देखते हुए दिए गए हैं। इन कंपनियों के पास विदेश से 1.8 करोड़ टन कोयला पहुंच सकता है।
कोयला आयात की राह की सबसे बड़ी बाधा अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमत है। यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से यूरोपीय देशों में गैस की आपूर्ति बाधित होने की आशंका ने कोयले की कीमतें बढ़ा दी हैं। मार्च, 2022 में एक समय कोयला 400 डालर प्रति टन के स्तर पर चला गया था। रेटिंग एजेंसी इकरा की रिपोर्ट कहती है कि 2023 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत 215 डालर प्रति टन के स्तर पर रह सकती है।
महंगा होने के बावजूद आस्ट्रेलिया व इंडोनेशिया जैसे बड़े कोयला निर्यातकों के साथ अभी खरीद सौदा करना आसान नहीं है क्योंकि यूरोपीय देश कोयले के बड़े खरीददार बने हुए हैं। दूसरी तरफ भारतीय कंपनियों ने पिछले वर्ष औसतन 49 डालर प्रति टन की दर से आयात किया था। चार गुनी कीमत पर कोयला खरीदने का मतलब है कि घरेलू बाजार में बिजली की कीमत भी उसी हिसाब से बढ़ानी होगी।
इन समस्याओं के बावजूद बिजली मंत्रालय ने राज्यों से कहा है कि वे मई, 2022 में कोयला आपूर्ति का आर्डर दें ताकि अभी जिस तरह का संकट है, वैसा मानसून के बाद न पैदा हो। पिछले वर्ष सितंबर-अक्टूबर में ऐसा हो चुका है। कोयले की महंगाई की वजह से ही कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में पूरा उत्पादन नहीं हो रहा है। देश में 17,400 मेगावाट क्षमता के बिजली प्लांट सिर्फ आयातित कोयले के आधार पर लगाए गए हैं। इसमें अडाणी व टाटा समूह के संयंत्र शामिल हैं। आज इन प्लांट में सिर्फ सात हजार मेगावाट बिजली बन रही है। देश में मौजूदा बिजली संकट के लिए ये भी जिम्मेदार हैं।
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