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अवैध निर्माण को लेकर यूपी सरकार का सुप्रीम कोर्ट में बड़ा दावा, अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई का दंगे से संबंध नहीं

उत्तर प्रदेश में चल रही बुलडोज़र कार्रवाई को लेकर उत्तर प्रदेश की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कार्रवाई का दंगों से संबंध नहीं है।


Bulldozer Action: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया है कि राज्य में चल रही बुलडोज़र (Bulldozer) कार्रवाई का दंगों से संबंध नहीं है। राज्य सरकार ने जमीयत उलेमा ए हिंद पर मामले को गलत रंग देने का आरोप लगाया है। सरकार की तरफ से कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा गया है कि जिन संपत्तियों पर कार्रवाई हुई उन्हें तोड़ने का आदेश कई महीने पहले जारी हो चुका था। लोगों को अपना निर्माण खुद हटाने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था।

राज्य के गृह विभाग के विशेष सचिव राकेश कुमार मालपानी (Rakesh Kumar Malpani) की तरफ से दाखिल हलफनामे में सिलसिलेवार तरीके से बताया गया है कि जिन संपत्तियों का उल्लेख जमीयत उलेमा ए हिंद ने अपनी याचिका में किया है उन्हें हटाने की कार्रवाई लंबे समय से कानपुर और प्रयागराज प्राधिकरण कर रहे थे। हलफनामे के मुताबिक कानपुर के बेनाझाबर इलाके में इश्तियाक अहमद को 17 अगस्त 2020 को पहली बार अवैध निर्माण के लिए नोटिस जारी हुआ था। लंबी प्रशासनिक प्रक्रिया के बाद मकान को सील किया गया. लेकिन उस सील को इश्तियाक की तरफ से तोड़ दिया गया। सभी कानूनी प्रावधानों का पालन करने के बाद 19 अप्रैल 2022 को प्राधिकरण ने उस निर्माण को ढहाने का आदेश जारी किया। अवैध निर्माण करने वाले को उसे खुद हटा लेने के लिए 15 दिन का समय भी दिया गया। आखिरकार, 11 जून को प्राधिकरण ने निर्माण को गिरा दिया।

18 फरवरी को जारी हुआ था नोटिस

कानपुर के सिंहपुर ज़ोन-1 में निर्माणाधीन रियाज़ अहमद के पेट्रोल पंप के बारे में बताया गया है कि बिना अनुमति के चल रहे इस निर्माण को रोकने का नोटिस 18 फरवरी को जारी हुआ था। रियाज़ अहमद की तरफ से न तो जवाब दाखिल हुआ, न उन्होंने प्रशासन से सहयोग किया. 20 अप्रैल को इस निर्माण को गिराने का आदेश जारी हुआ। 11 जून को प्राधिकरण ने यह कार्रवाई की। 17 जून को रियाज़ अहमद ने खुद आवेदन देकर स्वीकार किया है कि निर्माण अवैध था। उन्होंने अब इसे अनुमति देने की प्रार्थना की है।

प्रयागराज में जावेद मोहम्मद के मकान पर 12 जून को हुई कार्रवाई के बारे में बताया गया है कि मई की शुरुआत में जेके आशियाना कॉलोनी के निवासियों ने इस अवैध निर्माण की शिकायत की। उन्होंने बताया कि 2 मंजिला मकान का निर्माण अनियमित तरीके से हुआ है, बल्कि वहां एक राजनीतिक दल का कार्यालय भी चलाया जा रहा है, जो कि आवासीय इलाके में नहीं किया जा सकता। 10 मई को जावेद मोहम्मद को नोटिस जारी हुआ। उनके या उनकी परिवार की तरफ से प्राधिकरण से कोई सहयोग नहीं किया गया। उनसे व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए भी कहा गया लेकिन वह नहीं आए। 25 मई को निर्माण को गिराने का आदेश जारी हो गया।

प्रिवेंशन ऑफ पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट के तहत हो रही कानूनी कार्रवाई

यूपी सरकार ने बताया है कि सारी कार्रवाई उत्तर प्रदेश अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1973 में तय प्रक्रिया के मुताबिक हुई है। लेकिन जमीयत इसे दुर्भावना का रंग देने की कोशिश कर रहा है। जहां तक दंगे में शामिल होने के लिए कानूनी कार्रवाई का सवाल है तो इसे सीआरपीसी, गैंगस्टर एक्ट, प्रिवेंशन ऑफ पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट के तहत किया जा रहा है। अवैध निर्माण गिराने की कार्रवाई को दंगे से नहीं जोड़ा जा सकता। जिन लोगों के निर्माण गिराए गए हैं, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में यह नहीं कहा है कि उन्हें नोटिस नहीं मिला था। बल्कि जमीयत नाम का संगठन मीडिया में छपी हुई बातों के आधार पर इस तरह का दावा कर रहा है इस याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार, 24 जून को मामले की सुनवाई करेगा।

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