कई एक्सपर्ट्स के अनुसार तीसरा विश्व युद्ध पानी को लेकर हो सकता है। आज पूरे विश्व में स्वच्छ जल की कमी और समुद्र के खाले जल का स्तर बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक स्वच्छ जल की कमी को पूरा करने के लिए नित नई प्रयास कर रहे हैं। इनमें छिपे हुए जल स्रोतों को ढूंढने से लेकर हवा से पानी बनाने तक की कोशिशें हो रही है। आइए जानते हैं कि अमरीका की प्रख्यात स्पेस एजेंसी NASA किस तरह पानी की कमी को दूर करने का प्रयास कर रही है। इस संबंध में नासा ने एक ट्वीट करते हुए जानकारी भी दी है।
वैज्ञानिक अब रडार इमेजिंग के जरिए भी भूगर्भीय जल स्रोत ढूंढने का प्रयास कर रहे है। इसमें उन्हें पर्याप्त सफलता भी मिल रही है। इस तकनीक को वर्ष 2002 में नासा ने प्रयोग करना आरंभ किया था। बाद में वर्ष 2013 में उत्तर पश्चिम केन्या के एक सूखे इलाके में जमीन के नीचे दस ट्रिलियन गैलन से भी अधिक पानी का विशाल जलभंडार सफलतापूर्वक ढूंढा गया। अब बहुत से देशों में इस तकनीक के जरिए पानी ढूंढा जा रहा है और पानी की कमी दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
नासा के वैज्ञानिकों ने भूमि में मौजूद खराब जल को स्वच्छ और पीने लायक बनाने के लिए कई तरीके खोजे हैं। इमल्सीफाइड ज़ीरो-वैलेंट आयरन या EZVI भी ऐसा ही एक तरीका है। इस तरीके के जरिए भूजल से पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल्स, या पीसीबी, एक अन्य आम प्रदूषक को हटाया जाता है, जिससे खराब पानी भी पीने योग्य बन जाता है। इस तकनीक का उपयोग पूरी दुनिया में किया जा रहा है।
इस तकनीक को स्पेस शिप में पानी की कमी दूर करने के लिए विकसित किया गया था। इसके एक माइक्रोबियल चेक फिल्टर के जरिए पानी को स्वच्छ किया जाता है जिससे वह पीने योग्य बन जाता है। वर्तमान में इस तकनीक का प्रयोग दुनिया के बहुत से देशों में सफलतापूर्वक किया जा रहा है। बहुत से इंडस्ट्रीज में भी इस तकनीक के जरिए खराब और अवशिष्ट जल को स्वच्छ जल में बदला जा रहा है।
अंतरिक्ष यात्रियों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए नासा ने कई जल शोधन तकनीक विकसित की थी। ऐसी ही एक तकनीक में चार्ज्ड माइक्रो एल्यूमिना फाइबर और एक्टिव कार्बन के जरिए पानी को शुद्ध किया जाता है। अब इस तकनीक को लगभग हर इंडस्ट्री में जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तकनीक को मिनरल वाटर प्लांट्स, वाटर रिसाइक्लिंग प्लांट्स सहित घरों में भी वाटर फिल्ट्रेशन के काम लिया जा रहा है।
इस तकनीक को वर्ष 2007 में विकसित किया गया था। इसमें जल को एक पतली कोशिकीय झिल्ली से गुजारा जाता है। इससे जल में मौजूद सभी तरह के अवशिष्ट पदार्थ, गंदगी और भारी कण छन जाते हैं और पानी पीने युक्त बन जाता है। इस पूरे प्रोसेस को ऑस्मोसिस कहा जाता है। वर्तमान में इसका प्रयोग घरों में लगाए जाने वाले वाटर फिल्टर प्लांट्स में बहुतायत से किया जा रहा है।
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