English മലയാളം

Blog

Screenshot 2023-03-05 091919

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सुक्खू ने कहा कि राज्य सरकार उभरते जैव-ऊर्जा क्षेत्र में नीतिगत सुझावों एवं अनुसंधान सहयोग के लिए आईएसबी के साथ समन्वय करेगी।

 

इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता करते हुए श्री सुक्खू ने कहा कि राज्य सरकार चीड़ की पत्तियों और बांस से जैव ऊर्जा उत्पादन का एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू करेगी। उन्होंने कहा कि राज्य में शंकु वन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और बांस उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। इस परियोजना के माध्यम से स्थानीय स्तर पर लोगों की सहभागिता से उनकी आय में वृद्धि की जा सकेगी।

Also read:  हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने गोवा के सीएम प्रमोद सांवत से की मुलाकात, सीएम ने रक्षात्मक रणनीति को सराहा

उन्होंने कहा कि थर्मल पावर, सीमेंट और स्टील जैसे कई क्षेत्रों से उत्सर्जन कम करने के लिए जीवाश्म ईंधन के विकल्पों की सम्भावनाएं तलाशी जा रही हैं। ऐसे में चीड़ की पत्तियों से बने ईंधन को सम्भावित विकल्प के रूप में शामिल किया जाएगा, क्योंकि इसकी ऊष्मीय महत्ता अधिक है। उन्होंने कहा कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का मार्ग भी प्रशस्त होगा। उन्होंने कहा कि आईएसबी उद्योग के लिए सहयोग एवं खरीददारों के माध्यम से उपयुक्त बाजार भी उपलब्ध करवाएगा।

Also read:  गुजरात स्थानीय निकाय चुनाव : शुरुआती रुझानों में 81 नगर निकायों में से अधिकतर पर बीजेपी को बढ़त मिली

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने वर्ष 2025 तक हिमाचल को हरित ऊर्जा राज्य बनाने का लक्ष्य रखा है। सरकार द्वारा पैट्रोल में इथेनॉल की प्रतिशतता 10 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत की गई है। उन्होंने कहा कि आईएसबी बांस से इथेनॉल, कम्प्रेस्ड बायोगैस फर्टिलाइज़र बनाने का काम भी करेगा। इथेनॉल के अपशिष्ट बड़ी मात्रा में कम्प्रेस्ड बायोगैस और बायो फर्टिलाइज़र के उत्पादन में फीडस्टॉक के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं।

Also read:  24 घंटों में सबसे कम COVID-19 का मामला तीन महीने के बाद सामने आया है, मौत का आंकड़ा दर 500 महीने से भी कम

उन्होंने सामुदायिक वन स्वामित्व के महत्व पर बल देते हुए कहा कि इसके माध्यम से वनों की सुरक्षा तथा सतत प्रबंधन के लिए प्रोत्साहन मिलता है। उन्होंने कहा कि सामुदायिक वन स्वामित्व वृहद् सामाजिक दायित्वों से जुड़ा है और इससे वनों के संरक्षण को और अधिक प्रोत्साहन मिलता है।

उन्होंने कहा कि इससे पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक मामलों के बेहतर प्रबंधन में मदद मिलती है और ऐसे में यह औद्योगिक भागीदारों और निजी निवेश को भी आकर्षित करेगा।