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नई दिल्ली: 

केंद्र सरकार ने लोन लेने वालों को बड़ी राहत दी है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि  एमएसएमई ऋण, शैक्षिक, आवास, उपभोक्ता, ऑटो, क्रेडिट कार्ड बकाया, पेशेवर और उपभोग ऋण पर लागू चक्रवृद्धि ब्याज को माफ किया जाएगा. सरकारी हलफनामे के मुताबिक 6 महीने के लोन मोरेटोरियम समय में दो करोड़ रुपये तक के लोन के ब्याज पर ब्याज की छूट देगी. केंद्र ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी की स्थिति में, ब्याज की छूट का भार वहन सरकार करे यही केवल समाधान है. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने कहा है कि उपयुक्त अनुदान के लिए संसद से अनुमति मांगी जाएगी.

केंद्र ने पैनल की सिफारिशों के बाद ब्याज माफ नहीं करने के रुख को बदल दिया है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार को उधारकर्ताओं की मदद करने के निर्देश के बाद Ex CAG राजीव महर्षि की अध्यक्षता में एक पैनल गठित किया गया था. केंद्र सरकार ने कोर्ट में पहले कहा था कि वह ब्याज माफ नहीं कर सकता है और यह बैंकों को प्रभावित करेगा. अब मामले की अगली सुनवाई 5 अक्टूबर को होगी.

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कहा था कि वो विभिन्न क्षेत्रों के लिए कुछ ठोस योजना लेकर अदालत आए. कोर्ट ने मामले को बार-बार टालने पर नाराजगी जाहिर की थी. कोर्ट ने 31 अगस्त तक NPA ना हुए लोन डिफाॉल्टरों को  NPA घोषित नहीं करने का भी अंतरिम आदेश जारी रखने के निर्देश दिए थे. वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मामले की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एम आर शाह की तीन जजों की बेंच कर रही है.

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RBI और केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील पेश की, जबकि इंडियन बैंक एसोसिएशन की तरफ से हरीश साल्वे मामले की पैरवी कर रहे हैं. पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इस फैसले से लोन लेने वालों पर दोहरी मार पड़ रही है क्योंकि उनसे चक्रवृद्धि ब्याज यानी कंपाउंडिंग इंट्रस्ट (Compounding Interest) लिया जा रहा है. याचिकाकर्ता ने कहा यह योजना दोगुनी मार है क्योंकि वे हमें चक्रवृद्धि ब्याज चार्ज किया जा रहा है. ब्याज पर ब्याज वसूलने के लिए बैंक इसे डिफॉल्ट मान रहे हैं. यह हमारी ओर से डिफ़ॉल्ट नहीं है. सभी सेक्टर बैठ गए हैं लेकिन RBI चाहता है कि बैंक कोविड-19 के दौरान मुनाफा कमाए और यह अनसुना है.’

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया, ‘RBI देश से लूटे गए करोड़ों रुपयों से नहीं जागा. RBI वैधानिक नियामक है, बैंकों का एजेंट नहीं. ब्याज पर ब्याज बिल्कुल गलत है और इसे चार्ज नहीं किया जा सकता. आईबीसी को उद्योग को राहत देने के लिए निलंबित किया गया लेकिन उधारकर्ताओं के बारे में क्या?’ वहीं रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए CREDI ने कहा कि ‘ब्याज वसूलने से NPA (Non-Performing Assests) में वृद्धि हो सकती है. यदि ब्याज माफ नहीं किया जा सकता है, तो कम से कम इसे उस स्तर तक कम करें जिस पर बैंक जमाकर्ताओं का भुगतान करते हैं. कम से कम 6 महीने तक की मोहलत दी जाए.’

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दरअसल, केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया कि लोन मोरेटोरियम दो साल के लिए बढ़ सकता है. लेकिन यह कुछ ही सेक्टरों को दिया जाएगा. मेहता ने कोर्ट में उन सेक्टरों की सूची सौंपी थी, जिन्हें आगे राहत दी जा सकती है. पिछली सुनवाई में लॉकडाउन पीरियड में लोन मोरेटोरियम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए 7 दिन मेंहलफनामा देकर ब्याज माफी की गुंजाइश पर स्थिति साफ करने को कहा था.

कोर्ट ने कहा था कि ‘लोगों की परेशानियों की चिंता छोड़कर आप सिर्फ बिजनेस के बारे में नहीं सोच सकते. सरकार आरबीआई के फैसले की आड़ ले रही है, जबकि उसके पास खुद फैसला लेने का अधिकार है. डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत सरकार बैंकों को ब्याज पर ब्याज वसूलने से रोक सकती है.’ अदालत ने कमेंट किया था कि बैंक हजारों करोड़ रुपए एनपीए में डाल देते हैं, लेकिन कुछ महीने के लिए टाली गई ईएमआई पर ब्याज वसूलना चाहते हैं.

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बता दें कि कोरोना और लॉकडाउन की वजह से आरबीआई ने मार्च में लोगों को मोरेटोरियम यानी लोन की ईएमआई 3 महीने के लिए टालने की सुविधा दी थी. बाद में इसे 3 महीने और बढ़ाकर 31 अगस्त तक के लिए कर दिया गया. आरबीआई ने कहा था कि लोन की किश्त 6 महीने नहीं चुकाएंगे, तो इसे डिफॉल्ट नहीं माना जाएगा. लेकिन, मोरेटोरियम के बाद बकाया पेमेंट पर पूरा ब्याज देना पड़ेगा.

ब्याज की शर्त को कुछ ग्राहकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उनकी दलील है कि मोरेटोरियम में इंटरेस्ट पर छूट मिलनी चाहिए, क्योंकि ब्याज पर ब्याज वसूलना गलत है. एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुनवाई में यह मांग भी रखी कि जब तक ब्याज माफी की अर्जी पर फैसला नहीं होता, तब तक मोरेटोरियम पीरियड बढ़ा देना चाहिए.