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सर्वोच्च न्यायलय ने चुनावों के दौरान किए जाने वाले मुफ्त सुविधाएं देने के वादों पर बड़ा फैसला लिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि यह एक जटिल मुद्दा है। इस मामले को अब तीन जजों की पीठ के पास भेजने का फैसला किया गया है।

सर्वोच्च न्यायलय ने चुनावों के दौरान किए जाने वाले मुफ्त सुविधाएं देने के वादों पर बड़ा फैसला लिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि यह एक जटिल मुद्दा है। इस मामले को अब तीन जजों की पीठ के पास भेजने का फैसला किया गया है। सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश एनवी रमण के कार्यकाल का आज आखिरी दिन है। स्टिस यू यू ललित देश के नए मुख्य न्यायधीश होंगे। कार्यकाल के आखिरी दिन एनवी रमण की अध्यक्षता वाली बेंच ने ‘फ्रीबीज’ मामले को तीन जजों की पीठ के पास भेजने का फैसला किया।

सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एक चुनावी लोकतंत्र में सच्ची शक्ति मतदाताओं के पास होती है और मतदाता ही पार्टियों और उम्मीदवारों का फैसला करते हैं।

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बता दें कि सरकारों द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली सुविधाओं को देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा मानते हुए सर्वोच्च न्यायलय इस मामले की सुनवाई कर रहा है। इस मामले पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने पहले भी कई अहम टिप्पणियां की हैं। इस मामले पर सुनवाई के दौरान बीते मंगलवार को सर्वोच्च न्यायलय ने कहा था कि वह किसी सरकारी नीति या योजना के खिलाफ नहीं है लेकिन मुफ्त उपहारों और कल्याणकारी उपायों के बीच अंतर करना होगा। मुफ्त सुविधाएं क्या हैं और उन्हें कैसे लोगों के उत्थान के लिए फायदेमंद कहा जा सकता है यह तय करना होगा।

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भाजपा नेता अश्विनी कुमार ने इस मामले पर जनहित याचिका दाखिल की थी जिस पर शीर्ष अदालत में सुनवाई हो रही है। केंद्र सरकार की तरफ से सुनवाई में हिस्सा ले रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि किसी को भी सामाजिक कल्याण उपायों से कोई समस्या नहीं है। कठिनाई तब उत्पन्न होती है जब एक पार्टी गैर-जरूरी सामान जैसे साड़ी, टेलीविजन सेट आदि वितरित करती है। तुषार मेहता ने कहा कि इसके विनाशकारी आर्थिक परिणाम होंगे।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुफ्त में दी जाने वाली सुविधाओं के वादे को रेवड़ी कल्चर बता चुके हैं। नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ऐसे वादे करने वाले देश के बच्चों का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं।