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दिल्‍ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण (Air Pollution) पर अंकुश लगाने के लिए पराली जलाने (Stubble Burning) पर नए दिशा-निर्देश की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इनकार कर दिया है।

 

कोर्ट ने कहा कि ये कुछ ऐसे मुद्दों में शामिल है, जो न्यायपालिका के अधीन नहीं आता है। ये ऐसा मुद्दा है कि इसके समाधान के लिए गंभीरता से कदम उठाने की जरूरत है। हाल ही में दिल्‍ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्‍तर खतरनाक स्‍तर पर पहुंच गया था, जिसके बाद दिल्‍ली सरकार ने प्राइमरी स्‍कूलों को बंद करने सहित कई कड़े कदम उठाए थे।

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मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले वकील शशांक शेखर झा से पूछा कि क्या सिर्फ पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाने से वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी?

सीजेआई ने शशांक झा से पूछा, ‘क्‍या है दिल्‍ली में वायु प्रदूषण का समाधान।’ यह बताए जाने पर कि पराली जलाने से प्रदूषण हो रहा है, पीठ ने कहा, ‘क्‍या हम पराली जलाने पर प्रतिबंध लगा दें? इसके बाद क्‍या प्रदूषण रुक जाएगा? क्या हम इसे हर किसान के खिलाफ लागू कर सकते हैं? आइए कुछ वास्तविक समाधानों के बारे में सोचें। कुछ चीजें हैं, (जहां) अदालतें कुछ कर सकती हैं और कुछ ऐसी भी हैं जहां अदालतें नहीं कर सकतीं। हमें न्यायिक पहलुओं को देखना है।’

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पराली जलाने पर प्रतिबंध के साथ-साथ जनहित याचिका में स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी व निजी कार्यालयों को वर्चुअल/ऑनलाइन करने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि प्रदूषण की समस्या हर साल सामने आती है और दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में धुंध के कारण जीवन लोगों का जीना मुश्किल हो जाता है। याचिका में पराली जलाने के कारण होने वाले वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक ‘उच्च स्तरीय समिति’ की नियुक्ति की भी मांग की गई है।