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माजवादी पार्टी के दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव के निधन ने बेटे अखिलेश यादव को लेकर चर्चाएं बढ़ा दी हैं। उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं।

इधर, सपा तो नेताजी को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रमों की तैयारी कर चुकी है, लेकिन अखिलेश की प्रतिक्रियाओं की ओर नजरें जमी हुई हैं। उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। इधर, सपा तो नेताजी को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रमों की तैयारी कर चुकी है, लेकिन अखिलेश की प्रतिक्रियाओं की ओर नजरें जमी हुई हैं।

क्या मिलेगी हमदर्दी?

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अखिलेश को 2024 लोकसभा चुनाव में सहानुभूति मिल सकती है। हालांकि, वह यह भी कहते हैं कि सपा नेता को यादव बेल्ट में जमकर मेहनत करनी होगी, जो उनके पिताजी ने तैयार किया है। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, राजनीतिक जानकार प्रोफेसर सुधीर पवार कहते हैं, ‘उन्हें निश्चित रूप से यादवों और सपा के मूल स्थानों जैसे इटावा और मैनपुर के यादव बेल्ट में ज्यादा समय देना होगा।’

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उन्होंने आगे कहा, ‘क्योंकि यह विरासत उन्हें मुलायम सिंह यादव से मिली है।’ उन्होंने बताया, ‘हालांकि, मैंने देखा है कि इस ओर काम शुरू हो गया है। सैफई में नेताजी के अंतिम संस्कार के बाद भी अखिलेश चार घंटों से ज्यादा समय तक वहां मौजूद रहे थे और मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि देने अंतिम संस्कार के बाद भी पहुंच रहे लोगों से बात कर रहे थे।’

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गुरुवार को ही सपा के प्रदेश प्रमुख नरेश उत्तम ने पार्टी पदाधिकारियों से नेताजी को श्रद्धांजलि देने के लिए 21 अक्टूबर को हर जिले में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कहा है।

चाचा शिवपाल से कैसे रहेंगे संबंध?

यादव परिवार में अखिलेश और चाचा शिवपाल के रिश्ते भी हमेशा चर्चा में बने रहते हैं। अब मुलायम सिंह के निधन के बाद इसे लेकर फिर चर्चाओं का दौर जारी है। खास बात है कि विधानसभा चुनाव में साथ मैदान में उतरे अखिलेश और शिवपाल नतीजों के बाद से ही फिर विरोधी हो गए थे। इसी बीच जब शिवपाल ने एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुनाव के लिए समर्थन का फैसला किया, तो भाजपा के साथ उनकी करीबी की अटकलें लगाई जाने लगी। हालांकि, अभी यह देखना बाकी है कि दोनों नेता मौका का सियासी फायदा उठाते हैं या परिवार एक होगा।

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बसपा का गिरता ग्राफ सपा के लिए हो सकता है फायदेमंद

बीते महीने पार्टी कार्यक्रम के दौरान अखिलेश ने आंबेडकर और लोहिया समर्थकों से साथ आने की अपील की थी। खास बात है कि राज्य में बहुजन समाज पार्टी के घटते जनाधार के बीच भाजपा के खिलाफ यह दांव सपा के लिए फायदेमंद हो सकता है। बसपा ने बीते विधानसभा चुनाव में केवल एक ही सीट जीती थी।