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विधानसभा चुनाव  2022 चुनाव में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी राज्य बनने के बाद से चला आ रहा मिथक बदलने को तैयार है। 

 

भाजपा (BJP) ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election 2022) के लिए 59 प्रत्याशियों को चुनावी समर में उतार दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Dhami) को उनकी पारंपरिक विधानसभा सीट खटीमा (Khatima Assembly Seat) से मैदान में उतारा गया है। उत्तराखंड की सियासत में पुष्‍कर सिंह धामी का नाम बीते साल अचानक सुर्ख‍ी बन कर उभरा था। बीजेपी ने प्रदेश में सत्ता परिवर्तन करते हुए 45 साल के पुष्‍कर स‍िंह धामी को मुख्‍यमंत्री बनाया था। इसके साथ ही वह उत्तराखंड के सबसे युवा मुख्‍यमंत्री बने थे। पुष्‍कर स‍िंह धामी ने 3 जुलाई 2021 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। पुष्‍कर स‍िंह धामी का ये राजनीत‍िक सफर बेहद ही साधारण पर‍िवार से होकर गुजरा है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का जन्म 16 सितंबर 1975 को प‍िथौरागढ़ ज‍ि‍ले में स्‍थ‍ित डीडीहाट तहसील के टुण्डी गांव में हुआ था। पुष्‍कर सिंह धामी के प‍िता सेना में सूबेदार के पद पर कार्यरत थे। तो उनकी शुरुआती शिक्षा गांव के ही स्‍कूल में हुई। इसके बाद इनका परिवार खटीमा आ गया। जहां से धामी ने 12वीं तक की पढ़ाई गई। आगे की पढ़ाई के ल‍िए उन्‍होंने लखनऊ यून‍िवर्स‍िटी में दाखिला लि‍या। उन्होंने मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध में मास्टर्स की डिग्री ली।

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यहीं से उनके राजनीत‍िक जीवन की शुरुआत भी हुई।  2000 में उत्तराखंड के गठन से पहले ही पुष्‍कर स‍िंह धामी लखनऊ यून‍िवर्स‍िटी की छात्र राजनीत‍ि में सक्रिय हो गए थे। 1990 से 1999 तक जिले से लेकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में कई पदों में रहकर विद्यार्थी परिषद में काम किया। वे दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। धामी कुमायूं क्षेत्र के बड़े राजपूत चहेरे भी हैं। पुष्‍कर स‍िंह की मां का नाम व‍िशना देवी और पत्‍नी का नाम गीता धामी है और उनके दो बेटे हैं।

वरिष्ठ नेता भगत सिंह कोश्यारी को धामी का राजनीतिक गुरु माना जाता है। जब भगत सिंह कोश्यारी सीएम थे तो पुष्कर सिंह धामी उनके ओएसडी भी रह चुके हैं। वर्तमान में उन्हें रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के निकट माना जाता है. सीएम पुष्कर सिंह धामी का विधानसभा क्षेत्र होने से खटीमा सीट इस समय उत्तराखंड की सबसे हाट सीट बन चुकी है। धामी 2012 और 2017 में यहां से चुनाव जीत चुके हैं। पार्टी ने तीसरी बार उन्हें फिर यहीं से मैदान में उतारा है।

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इस बार बदलेंगे उत्तराखंड का इतिहास

पुष्कर सिंह धामी के सामने उत्तराखंड की राजनीति के दो अहम मिथकों को तोड़ने की चुनौती है। ये दोनों मिथक तोड़ने में पुष्कर कामयाब हुए तो फिर भाजपा को सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता. पुष्कर सिंह धामी ने इस बार इतिहास बदलने का दावा भी किया है और हवा का रूख भी उनके पक्ष में ही लग रहा है। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद हुए चार विधानसभा चुनाव का इतिहास रहा है कि इनमें मुख्यमंत्री रहते हुए जिस राजनेता ने चुनाव लड़ा, उसे पराजय का सामना करना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी और हरीश रावत इसके उदाहरण हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री धामी के सामने उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार सरकार न बना पाने के मिथक को तोड़ने की भी चुनौती है।

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पिछले चार चुनाव से यह मिथक बना हुआ है। 2002 में प्रदेश में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई। 2007 में वह सत्ता से बाहर हो गई और भाजपा की सरकार बनी। 2012 में भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा और सत्ता की बागडोर कांग्रेस के हाथों में आ गई। 2017 में फिर कांग्रेस की सत्ता से विदाई हुई और भाजपा ने सरकार बनाई। इस तरह पिछले चार चुनाव में एक ही पार्टी लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बना पाई। हालांकि इस बार भाजपा ये इतिहास बदलने की ओर पूर्ण रूप से अग्रसर है, और सीएम पुष्कर सिंह धामी ने एक तरफा जीत दर्ज करने का एलान भी कर दिया है।