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 उत्तर प्रदेश में 37 साल बाद ऐसा हुआ था कि किसी सरकार ने लगातार दूसरी बार वापसी की थी। 2022 में योगी सरकार की यह वापसी इसलिए हो पाई थी क्योंकि सरकार के मुखिया ने कानून व्‍यवस्‍था और अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई को लेकर जनता में भरोसा जगाया था। लेकिन मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की इसी प्रतिष्ठा को 24 फरवरी को प्रयागराज में सरेआम गोलियों से छलनी कर दिया गया।

बेखौफ बदमाशों ने बम और गोलियों से केवल राजू पाल हत्‍याकांड के गवाह उमेश पाल और उनके सुरक्षाकर्मियों को ही नहीं उड़ाया, बल्कि उस कानून व्‍यवस्था की भी धज्जियां उड़ा दीं, जिसके खौफ से राज्‍य भर के बदमाश तख्तियां लटकाकर थानों में सरेंडर कर रहे थे। यह माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके शूटरों की तरफ से योगी आदित्‍यनाथ तथा उनकी पुलिस के लिए खुली चुनौती थी कि बुलडोजर से रौंदे जाने के बावजूद हमारे हौंसले टूटे और पस्‍त नहीं हुए हैं।

योगी आदित्‍यनाथ ने इस हत्‍याकांड को चुनौती के रूप में लिया और सदन में कहा कि वह उमेश पाल की हत्‍या करने वाले माफिया को ‘मिट्टी में मिला देंगे।’ योगी के तीखे तेवर के बाद पुलिस तो सक्रिय हुई ही एसटीएफ को सारा काम छोड़कर अतीक के पुत्र असद अहमद तथा अन्‍य शूटरों की तलाश में लगा दिया गया। एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश के नेतृत्‍व में 12 टीमें हत्‍याकांड के तत्‍काल बाद शूटरों की तलाश में जुट गई। हर उस व्‍यक्ति को निशाने पर लिया गया, जिसकी अतीक और उसके परिवार से नजदीकी थी।

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इस पूरे ऑपरेशन की मॉनिटरिंग खुद योगी आदित्‍यनाथ कर रहे थे। प्रतिदिन शाम को उनके सरकारी आवास 5 कालीदास रोड पर होने वाली अपराध समीक्षा बैठक में वह एडीजी एसटीएफ अमिताभ यश से उमेश हत्‍याकांड और शूटरों से जुड़े अपडेट ले रहे थे। साथ ही एसटीएफ को आवश्‍यक निर्देश भी दे रहे थे। एसटीएफ ने इस पूरे ऑपरेशन के दौरान 850 लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की। एक दर्जन के आसपास अतीक के शुभचिंतकों तथा पनाह देने वाले सफेदपोशों की गिरफ्तारियां भी की गईं।