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 विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)की कोविड-19 से हुई मौतों पर आई ताजा रिपोर्ट ने, भारत के रिपोर्टिंग सिस्टम पर बड़े सवाल खड़े कर दिए है।

 

रिपोर्ट के अनुसार भारत में अकेले कोरोना से साल 2020 और 2021 में 47 लाख लोगों की मौत हुई है। जो कि भारत सरकार के आंकड़ों की तुलना में करीब 10 गुना ज्यादा संख्या है। भारत सरकार के अनुसार इन दो साल में देश में कोरोना से मरने वाले लोगों की संख्या 4.81 लाख थी। अब सवाल उठता है कि क्या भारत में कोरोना से मौत के आंकड़ों की संख्या कम रिपोर्ट हुई है। WHO की रिपोर्ट से तो फौरी तौर पर यही लगता है। लेकिन WHO और भारत सरकार के मौतों के आंकलन के तरीकों को देखा जाय, तो WHO की रिपोर्ट पर कई सारे सवाल भी खड़े होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि दो आंकड़े ऐसे हैं, जो कही न कहीं WHO की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हैं। पहला आंकड़ा, भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा तैयार किए जाने वाले सिविल रजिस्ट्रेशन का है, जो अलग कहानी बयान करता है। दूसरा आंकड़ा कोविड-19 की मौत के लिए मुआवजा लेने के लिए आवेदन करने वालों की संख्या है। जो WHO के आंकड़े से दूर-दूर तक तालमेल नहीं खाता है।

WHO ने क्या अपनाई प्रक्रिया

अपनी रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कोविड-19 से हुई अतिरिक्त मौतों की आंकड़ा लेने के लिए उसने विभिन्न देशों द्वारा दिए गए आंकड़ों के अलावा ऐसे आंकड़ों को शामिल किया है जो रिपोर्ट नहीं किए गए हैं। इसके अलावा उन मौतों को भी शामिल किया गया है, जिनका सीधा संबंध कोविड-19 से नही है। लेकिन अन्य कारणों से हुई मौत पर कोविड का असर हुआ है। इसी तरह लॉकडाउन या समय पर ईलाज नहीं मिलने से ऐसे लोगों की मौत को भी शामिल किया गया है, जिनकी अन्य कारण से मौत हो गई। जाहिर है WHO के आंकलन से साफ है कि उसने केवल कोविड-19 से हुई मौतों को अपनी लिस्ट में शामिल नहीं किया है।

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कोविड दौर में क्यों नहीं बड़े मौत के औसत आंकड़े

रजिस्ट्रेशन जनरल ऑफ इंडिया के सेंट्रल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के आंकड़ों को देखा जाय तो भारत में साल 2008 से 2020 के बीच औसतन हर साल 80-83 लाख के करीब मौतें हुई हैं। साथ ही मृत्यु के पंजीकरण और अनुमानित मृत्यु का अंतर भी कम हुआ है। यानी डाटा कहीं ज्यादा सटीक होता गया है। साल 2008 में जहां 57-58 लाख लोगों की मौत का पंजीकरण हुआ था। जबकि अनुमानित मृत्यु करीब 82 लाख थी। यानी रजिस्ट्रेशन प्रतिशत करीब 75 फीसदी । यह अंतर 2018 आते-आते काफी घट गया है। और देश में मृत्यु रजिस्ट्रेशन प्रतिशत 85 फीसदी के करीब पहुंच गया है। वहीं 2020 तक सराकर का दावा है कि यह 99.4 फीसदी हो गया है।

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साल अनुमानित मौतें मौंतों का रजिस्ट्रेशन
2016 81,53,510 63,49,259
2017 81,17,689 64,63,789
2018 82,12,576 69,50,607
2019 83,01,769 76,41,076
2010 81,20,268 81,15,882

WHO के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 और 21 में 47 लाख लोगों की मौत अकेले कोविड-19 की वजह से हुई है। तो साल 2020 में मौत का आंकड़े में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। सेंट्रल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के अनुसार 2020 में भी भारत में 81,20,268 की मौत हुई है। जो कि 2019 की पंजीकृत आंकड़ों की संख्या से 4,74,806 ज्यादा है। यानी पिछले 12 साल के औसत के करीब ही मौत का आंकड़ा रहा। ऐसे में WHO और भारत सरकार के आंकड़ों में तालमेल दूर-दूर तक नहीं दिखता है। जबकि भारत की रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ही देश में जनगणना की प्रक्रिया पूरा कराता है।

क्लेम करने वालों की संख्या और WHO के आंकड़े में तालमेल नहीं

इसी तरह अगर कोरोना से मौत पर मिलने वाले मुआवजे की बात की जाय, तो उसके लिए आवेदन करने वालों की संख्या और WHO के आंकड़े में तालमेन नहीं दिखाई देता है। सुप्रीम कोर्ट में 25 मार्च 2022 को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार देश में 7,38,610 लोगों के परिजनों ने कोरोना से हुई मौत के लिए मुआवजे की मांग की है। ऐसे में जाहिर है कि अगर 47 लाख लोगों की मौत हुई होती, तो WHO के आंकड़ों और मुआवजा मांगने वालों की संख्या में करीब 40 लाख का अंतर नहीं होता।

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आधिकारी आंकड़ों में भारत का शेयर करीब 9 फीसदी, लेकिन नई रिपोर्ट में करीब 32 फीसदी

WHO की रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली बात दिखती है। WHO की डेली रिपोर्ट के अनुसार 5 मई तक दुनिया भर में कोरोना से मरने वालों की संख्या 62.46 लाख से ज्यादा है। जिसमें भारत में 5.23 लाख से ज्यादा मौंते हुई हैं। जबकि अमेरिका में सबसे ज्यादा 9.88 लाख लोगों की मौत हुई है। उसके बाद ब्राजील में 6.66 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। यानी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत की हिस्सेदारी दुनिया में हुई कुल मौतें का करीब 9 फीसदी है। लेकिन अतिरिक्त मौतों की रिपोर्ट में WHO ने कुल 1.5 करोड़ मौतों की बात कही है। और उसमें से अकेले 47 लाख भारत में होने की बात कही है। यानी कुल मौतों में भारत की हिस्सेदारी करीब 33 फीसदी हो गई है। जबकि दूसरे अन्य देशों में अतिरिक्त मौत की हिस्सेदारी में बड़ा अंतर नहीं आया है।