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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कड़े फैसले लेने से नहीं हिचकिचाते। हालांकि उन्हें अपने कुछ निर्णय जैसे भूमि अधिग्रहण अधिनियम, कृषि विधेयक आदि वापस लेने पड़े थे, लेकिन वे हमेशा इस बात पर दृढ़ रहे हैं कि ऐसी खैरातें नहीं बांटनी चाहिए, जिनके दूरगामी वित्तीय परिणाम झेलने पड़ें।

 

आखिरी उदाहरण हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला जहां कांग्रेस ने सत्ता में आने पर पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करने का वादा किया था। हिमाचल में, सरकारी कर्मचारी पारंपरिक रूप से चुनाव परिणामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।

राज्य के वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने पार्टी आलाकमान को अवगत कराया कि पार्टी को कांग्रेस की गुगली का समुचित जवाब देना चाहिए। 12 नवंबर को मतदान के दिन तक हिमाचल में डेरा डालने वाले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कोर कमेटी की बैठक में इस पर चर्चा करने का वादा किया था। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि मोदी ने नरमी दिखाने से इनकार कर दिया।

इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने सुझाव दिया कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को ओपीएस बहाल किया जाए जिनकी संख्या 30 प्रतिशत से अधिक है। लेकिन मोदी ने पार्टी नेताओं के ऐसे सभी प्रस्तावों को खारिज करते हुए कहा कि इस तरह के कदम का अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। भाजपा को ऐसे लोकलुभावन कदमों के आगे नहीं झुकना चाहिए क्योंकि राज्य पहले से ही कर्ज में डूबा हुआ है और ओपीएस उसकी अर्थव्यवस्था को वस्तुत: तबाह कर देगा. मामला वहीं खत्म हो गया।

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नड्डा ने बचाया जयराम को

यह कोई रहस्य नहीं है कि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। उनके पिता प्रेम कुमार धूमल ने राज्य पर दो बार शासन किया था। वे 2017 में भाजपा के चुनाव जीतने के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं बन सके क्योंकि वह अपनी ही सीट हार गए थे। धूमल के समर्थक चाहते हैं कि प्रदेश की बागडोर अब अनुराग ठाकुर के कंधों पर आ जाए। लेकिन भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने घोषणा की कि भगवा पार्टी मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी।

हालांकि जयराम ठाकुर के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी और आलाकमान ने चुनाव से पहले जयराम ठाकुर को हटाने का मन बना लिया था। लेकिन पता चला है कि नड्डा ने जयराम ठाकुर का पक्ष लिया और आलाकमान को आश्वस्त किया कि उन्हें इस मोड़ पर बरकरार रखा जाना चाहिए। लेकिन कभी न कभी सबकी बारी आती है, इसलिए युवा कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर को दिल्ली में अभी प्रशासनिक अनुभव प्राप्त करना चाहिए।

हिमाचल प्रदेश में भाजपा की 1100 करोड़ की रेवड़ी

हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने पीएम मोदी के संकेतों को नहीं माना, जिन्होंने ‘रेवड़ी’ संस्कृति (मुफ्त उपहार) की तीव्र आलोचना की और पार्टी ने मतदाताओं को नए प्रोत्साहन और खैरातें देने का वादा किया। एक अनुमान के अनुसार इन मुफ्त उपहारों को ‘महिला सशक्तिकरण’ के रूप में पेश किया गया है। सत्तारूढ़ पार्टी अगर दोबारा सत्ता में आती है, तो स्कूल जाने वाली सभी लड़कियों को साइकिल और महिला स्नातक छात्राओं को स्कूटी देने के लिए 500 करोड़ रुपए खर्च करेगी।

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सरकार सेब की पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाली सामग्री पर 25 करोड़ रुपए का अतिरिक्त जीएसटी भी माफ करेगी। उसने सरकारी स्कूलों में 12 वीं कक्षा में टॉप करने वाली 5000 लड़कियों को हर महीने 2500 रुपए देने का भी वादा किया है और यह टॉपर्स को उनकी स्नातक स्तर की पढ़ाई के दौरान दिया जाएगा। मान लें कि ग्रेजुएशन तीन साल तक चलता है, तो राज्य को और 40-45 करोड़ रुपए देने पड़ सकते हैं।

साथ ही मुख्यमंत्री अन्नदाता सम्मान निधि के तहत 10 लाख किसानों को 3000 रुपए वार्षिक देने के लिए 300 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना या पीएम-जीकेएवाई में जिनका नाम है उन गरीब परिवारों की सभी महिलाओं को एक वर्ष में तीन एलपीजी सिलेंडर मिलेंगे। हिमाचल में पीएम-जीकेएवाई के तहत 2.82 लाख परिवार पंजीकृत हैं। इस योजना पर राज्य के सालाना 180 करोड़ रुपए खर्च होंगे। भाजपा ने एनीमिया और कुपोषण से निपटने के लिए गर्भवती महिलाओं को 25000 रुपए देने का वादा किया है। लेकिन मंत्री अनुराग ठाकुर ने दावा किया, ‘वे मुफ्त या रेवड़ी नहीं हैं। सभी योजनाएं महिलाओं के कल्याण और उनके स्वास्थ्य व आर्थिक सशक्तिकरण के लिए हैं।’

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ईडी के निदेशक पर अब सबकी निगाहें

सभी की निगाहें प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय मिश्र पर टिकी हैं कि क्या उन्हें 19 नवंबर को एक और सेवा विस्तार मिलेगा, जब वे सेवा में लगभग चार साल पूरे कर लेंगे। वे नवंबर 2018 में निदेशक के रूप में ईडी में शामिल हुए थे और सरकार उनके प्रदर्शन से बहुत खुश है। उन्हें बरकरार रखने के लिए सरकार ने सीबीआई और ईडी के निदेशकों के लिए सेवा नियमों से संबंधित कानून में भी संशोधन किया।

दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के बाद कि उनको आगे और सेवा विस्तार नहीं दिया जाएगा, संजय मिश्र के कार्यकाल को आगे बढ़ाने के लिए कानून में संशोधन किया। सुप्रीम कोर्ट ने अब संजय मिश्र के मामले में सुनवाई की अगली तारीख 18 नवंबर तय की है। लेकिन यह स्पष्ट है कि सरकार मिश्र के सेवा विस्तार मामले में झुकने के मूड में नहीं है, उसका तर्क है कि सरकार का यह विशेषाधिकार है कि वह किसी अधिकारी को कहां पदस्थ करे।