English മലയാളം

Blog

Screenshot 2022-02-22 111721

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि भ्रष्टाचार-रोधी कानून के प्रविधान के तहत किसी सरकारी कर्मचारी के घूस मांगने और उसे स्वीकार करने के अपराध को साबित करने के लिए प्रमाण का होना जरूरी है।

 

शीर्ष अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार रोकथाम (पीसी) अधिनियम की धारा सात के तहत लोक सेवकों द्वारा घूस मांगने से संबंधित अपराध के लिए गैर-कानूनी मांग और उसे स्वीकार करना अनिवार्य कारक होते हैं।

Also read:  नड्डा पर हमले को लेकर राज्यपाल ने केंद्र को सौंपी रिपोर्ट, फिर बंगाल जाएंगे अमित शाह

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने तेलंगाना हाई कोर्ट के उस फैसले को रद करते हुए यह कहा। उल्लेखनीय है धारा सात सरकारी अधिनियम के संबंध में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अवैध पारितोषिक लेने वाले लोक सेवकों के अपराध से संबंधित है।

इस मामले में हाई कोर्ट ने एक महिला लोक सेवक की सजा को बरकरार रखा था। सिकंदराबाद में वाणिज्यि कर अधिकारी के रूप में कार्यरत महिला अधिकारी को भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा सात के तहत दोषी ठहराया गया था।

Also read:  गोरखपुर में बेटियों के साथ पिता ने लगाई फांसी

पीठ ने अपने 17 पेज के फैसले में कहा कि भ्रष्टाचार रोकथाम (पीसी) अधिनियम की धारा सात के तहत लोक सेवकों द्वारा घूस मांगने से संबंधित अपराध के लिए गैर-कानूनी मांग और उसे स्वीकार करना अनिवार्य कारक होते हैं। इस अपराध को साबित करने के लिए सुबूत होना जरूरी है।

Also read:  24 घंटों में सबसे कम COVID-19 का मामला तीन महीने के बाद सामने आया है, मौत का आंकड़ा दर 500 महीने से भी कम

शीर्ष अदालत ने आरोपित महिला अधिकारी द्वारा तेलंगाना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका पर यह फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा घूस की मांग करने के आरोप को साबित करने के लिए शिकायतकर्ता के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं थे। पीठ ने कहा कि इसलिए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अपीलकर्ता द्वारा की गई मांग साबित नहीं की गई।