English മലയാളം

Blog

Screenshot 2022-02-22 111721

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि भ्रष्टाचार-रोधी कानून के प्रविधान के तहत किसी सरकारी कर्मचारी के घूस मांगने और उसे स्वीकार करने के अपराध को साबित करने के लिए प्रमाण का होना जरूरी है।

 

शीर्ष अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार रोकथाम (पीसी) अधिनियम की धारा सात के तहत लोक सेवकों द्वारा घूस मांगने से संबंधित अपराध के लिए गैर-कानूनी मांग और उसे स्वीकार करना अनिवार्य कारक होते हैं।

Also read:  आरुषि निशंक ने सीएम धामी से की भेंट, कहा-बॉलीवुड को उत्तराखंड से जोड़ा जाएगा, फिल्म शूटिंग के लिए तलाशे जाएंगे नए अवसर,

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने तेलंगाना हाई कोर्ट के उस फैसले को रद करते हुए यह कहा। उल्लेखनीय है धारा सात सरकारी अधिनियम के संबंध में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अवैध पारितोषिक लेने वाले लोक सेवकों के अपराध से संबंधित है।

इस मामले में हाई कोर्ट ने एक महिला लोक सेवक की सजा को बरकरार रखा था। सिकंदराबाद में वाणिज्यि कर अधिकारी के रूप में कार्यरत महिला अधिकारी को भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा सात के तहत दोषी ठहराया गया था।

Also read:  US कैपिटॉल बिल्डिंग में घुसी ट्रंप समर्थकों की भीड़, पुलिस के साथ हिंसक झड़प, चार की मौत

पीठ ने अपने 17 पेज के फैसले में कहा कि भ्रष्टाचार रोकथाम (पीसी) अधिनियम की धारा सात के तहत लोक सेवकों द्वारा घूस मांगने से संबंधित अपराध के लिए गैर-कानूनी मांग और उसे स्वीकार करना अनिवार्य कारक होते हैं। इस अपराध को साबित करने के लिए सुबूत होना जरूरी है।

Also read:  अखिलेश यादव की पत्नी और बेटी कोरोना पॉजिटिव

शीर्ष अदालत ने आरोपित महिला अधिकारी द्वारा तेलंगाना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका पर यह फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा घूस की मांग करने के आरोप को साबित करने के लिए शिकायतकर्ता के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं थे। पीठ ने कहा कि इसलिए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अपीलकर्ता द्वारा की गई मांग साबित नहीं की गई।