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 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि हम अपनी ऐतिहासिक विरासतों के प्रति बड़े उदासीन हैं। हमें अपने इतिहास के पन्नों को खोज-खोज कर समझने की जरूरत है।

 

प्रधानमंत्री ने यह बात मंगलवार को मुंबई स्थित राजभवन में ‘क्रांति गाथा संग्रहालय’ एवं ‘जल भूषण’ भवन का उद्घाटन करते हुए कही। तीन तरफ से अरब सागर से घिरे मुंबई के राजभवन के नीचे अंग्रेजों के बनाए एक विशाल बंकर का पता 2016 में चला था। इस बंकर को ही अब क्रांति गाथा संग्रहालय में बदल दिया गया।

इसी का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सात दशक से राजभवन में गतिविधियां चल रही हैं, और हमें पता भी नहीं चला कि इसके नीचे कोई बंकर भी है। इससे अपनी विरासत के प्रति हमारी उदासीनता का पता चलता है। हमें अपने इतिहास के पन्नों को खोज-खोज कर उन्हें समझने की जरूरत है। मोदी ने कहा कि इन बंकरों का इस्तेमाल कभी अंग्रेजों द्वारा हथियार रखने के लिए किया जाता था। जिनका उपयोग वह हमारे ही क्रांतिकारियों के विरुद्ध किया करते थे। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष के दौरान अब उसी बंकर में बना ‘क्रांति गाथा संग्रहालय’ अब हमारे क्रांतिकारी वीरों की वीरगाथाएं याद दिलाएगा।

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पीएम मोदी ने कहा कि जब हम ‘स्वराज’ की बात करते हैं, तो छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज का जीवन आज भी प्रत्येक भारतीय में देशभक्ति की भावना को मजबूत करता है। जब हम भारत की आजादी की बात करते हैं, तो जाने-अनजाने उसे कुछ घटनाओं तक सीमित कर देते हैं। जबकि भारत की आजादी में अनगिनत लोगों का तप और उनकी तपस्या शामिल रही है। स्थानीय स्तर पर हुई अनेकों घटनाओं का सामूहिक प्रभाव राष्ट्रीय था। साधन अलग थे लेकिन संकल्प एक था।

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बता दें कि राजभवन में इसी वर्ष दो नए भवनों का निर्माण कार्य पूरा हुआ है। कुछ माह पहले ही नए दरबार हाल का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया था। मंगलवार को राज्यपाल के नए आवास ‘जल भूषण’ का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इन दोनों विशाल भवनों का निर्माण कार्य राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी के ही कार्यकाल में पूरा हुआ है।

इससे पहले प्रधानमंत्री ने पुणे के देहू गांव में संत तुकाराम के शिला मंदिर का भी उद्घाटन किया। इसी शिला पर बैठकर संत तुकाराम ने तपस्या की थी। मोदी ने इस समारोह में बड़ी संख्या में एकत्र हुए वारकरी संप्रदाय के लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जिस शिला पर संत तुकाराम जी ने बैठकर तपस्या की, वह भक्ति और ज्ञान की आधारशिला है। यह भारत के शाश्वत भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती रहेगी।

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संत तुकाराम द्वारा रचित उपदेशात्मक काव्य अभंग का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि जो भंग न हो, सदैव शाश्वत रहे, वही अभंग है। महाराष्ट्र के संत समाज द्वारा समय-समय पर रचे गए अभंगों से कभी छत्रपति शिवाजी महाराज ने प्रेरणा पाई, तो कभी अंडमान की सेल्यूलर जेल में वीर सावरकर अपनी हथकड़ियां बजाकर इनका गायन करते रहे। प्रधानमंत्री ने वारकरी संप्रदाय द्वारा हर साल आषाढ़ के महीने में निकाली जानेवाली पालकी के मार्ग पर 350 किलोमीटर के महामार्ग निर्माण की घोषणा भी की।