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लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी आरक्षण का दांव चलेगी। वह भाजपा पर आरक्षण की अनदेखी का आरोप लगाते हुए टिकट बंटवारे में सियासी समीकरण साधेगी। इसकी तैयारी शुरू हो गई है। 

पार्टी की रणनीति है कि जिन इलाके में पिछले, अति पिछड़े अथवा अनुसूचित जाति की संख्या अधिक है, वहां इस वर्ग से उम्मीदवार उतारे जाएं। ऐसे में कई अनारक्षित सीटों पर इस वर्ग के उम्मीदवार उतार कर आरक्षण का हितैषी होने का संदेश दिया जाएगा।

समाजवादी पार्टी ने निकाय चुनाव में आरक्षण की अनदेखी का आरोप लगाया है। पार्टी की टीम ने शासन से जारी सीटों पर आरक्षण का अध्ययन किया। इसमें बताया कि बरेली में जहां अनुसूचित जाति को छह फीसदी आरक्षण दिया गया है वहीं जौनपुर, मैनपुरी, रायबरेली में सिर्फ 11 फीसदी।

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आपत्ति के बाद भी आरक्षण की व्यवस्था में बदलाव नहीं किया गया है। ऐसे में पार्टी की रणनीति है कि इस मुद्दे को निरंतर गरमाया जाएगा। लोगों को बताया जाएगा कि भाजपा सरकार जानबूझकर संविधान में किए गए प्रावधानों को खत्म कर रही है। इसके लिए तमाम अनारक्षित सीटों पर पार्टी आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है।

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इसके जरिए वह लोगों को समझाएगी कि सरकार ने भले आरक्षण की अनदेखी की है, लेकिन सपा इसका पालन करेगी। यही वजह है कि जिलेवार नगर पालिका, नगर पंचायतों में मतदाताओं की संख्या के बारे में जानकारी मांगी है।

इस तरह तैयार होगा सियासी गणित

सूत्रों का कहना है कि पार्टी की रणनीति है कि जिले को यूनिट बनाकर नगर पालिका व नगर पंचायत अध्यक्ष एवं सभासदों के बीच सामाजिक समीकरण साधा जाए। अनारक्षित सीट पर अध्यक्ष पद पिछड़ी जाति का उम्मीदवार उतारा जाता है तो सभासद पद पर अति पिछड़े अथवा अनुसूचित जाति की संख्या अधिक की जाएगी।
इसमें यह देखा जाएगा कि अध्यक्ष पद के उम्मीदवार की अनुसूचित जाति व अति पिछड़े वर्ग की कौन-कौन सी जाति में पकड़ मजबूत है। इसी आधार पर समीकरण तैयार किया जाएगा, ताकि भविष्य में जनता के बीच रिपोर्ट रखी जा सके।