अब इसे राजनीतिक निरक्षरता कहें या कोरोना का भय, लेकिन पटना शहर के वोटरों ने हर बार की तरह इस बार भी मतदान में अरुचि ही दिखाई है। पटना के तीन विधानसभा क्षेत्रों के शहरी वोटर मतदान करने में सबसे निचले पायदान पर रहे।
दूसरे चरण के 94 विधानसभा क्षेत्रों में हुए मतदान में पटना जिले का दीघा इलाका कुल वोट में से महज 34.50 मत प्रतिशत हासिल कर न्यूनतम स्थान पर रहा। वहीं सबसे नीचे से दूसरे और तीसरे स्थान पर पटना का ही बांकीपुर और कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र रहा। बांकीपुर में 35.90 प्रतिशत और कुम्हरार में 36.40 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
उधर सुदूर प. चंपारण के चनपटिया विधानसभा के ग्रामीण मतदाताओं ने जमकर लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा लिया और मतदान करने में अव्वल रहे। यहां के कुल मतदाताओं में से 63.62 प्रतिशत लोगों ने अपने-अपने मताधिकार का उपयोग किया और ये राज्यभर में शीर्ष स्थान पर रहा। मतदान प्रतिशत के हिसाब से राज्य भर में दूसरा स्थान पटना के ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र मनेर का रहा है।
यहां के ग्रामीण मतदाताओं ने 61.80 प्रतिशत मतदान कर पटना के शहरी वोटरों को उनकी राजनीतिक निरक्षरता का आभास कराया है। वहीं सर्वाधिक मतदान प्रतिशत के मामले में तीसरा स्थान मुजफ्फरपुर जिला के कांटी विधानसभा का है जहां के मतदाताओं ने अपने पसंदीदा उम्मीदवार को चुनने के लिए 61.43 प्रतिशत वोट का प्रयोग किया है।
दूसरे चरण में मतदान प्रतिशत के लिहाज से शीर्ष स्थान पर काबिज होने वाले चनपटिया के विधायक भाजपा के प्रकाश राय हैं, दूसरे स्थान पर रहने वाले मनेर के विधायक भाई वीरेंद्र हैं और तीसरे पायदान पर रहने वाले कांटी के निर्दलीय विधायक अशोक कुमार हैं।
जबकि न्यूनतम वोट प्रतिशत आकर्षित करने के मामले में नीचे से पहले स्थान पर काबिज रहने वाले दीघा विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक संजीव चौरसिया हैं जो दूसरी जीत के लिए चुनावी मैदान में हैं। नीचे से दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले बांकीपुर और कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक नितिन नवीन और अरुण कुमार सिन्हा हैं। नितिन नवीन लगातार चौथी बार मैदान में हैं तो अरुण कुमार सिन्हा इस क्षेत्र से पांचवी पाली खेल रहे हैं।
दरअसल, मतदान प्रतिशत के हिसाब से 11 विधानसभा क्षेत्र ऐसे रहे जहां 60 प्रतिशत या उससे अधिक मतदान हुआ. जिन जिलों का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा उनमें अव्वल स्थान मुजफ्फरपुर का रहा। यहां के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से चार में मतदान प्रतिशत 60 प्रतिशत से अधिक रहा।
जबकि बेगूसराय के सात विधानसभा क्षेत्रों में से तीन में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। वहीं पूर्वी चंपारण के छह में से दो और पटना के नौ में से एक विधानसभा क्षेत्र में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ।
मतदान प्रतिशत अधिक और कम होने के कारणों पर एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. डीएम दिवाकर का कहना है कि मतदान प्रतिशत का अधिक रहाना यह बतलाता है कि लोगों ने बदलाव के लिए जमकर वोट किया है।
जिन इलाकों में यह शीर्ष रहा है वो सभी ग्रामीण क्षेत्र है। इसका मतलब स्पष्ट है कि गांवों में परिवर्तन की लहर ज्यादा है। इसका दूसरा पक्ष शहरी इलाकों में दिखता है जहां मतदान प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव से लगभग दस प्रतिशत कम रहा। यह मध्यवर्ग का लोकतंत्र के प्रति उदासीनता को दिखाता है।
इतिहास बताता है कि मध्यवर्ग ही ट्रेंड सेटर होता है, लेकिन वर्तमान बताता है कि मध्यवर्ग की रूचि लोकतंत्र में रुचि समाप्त हो रही है। लेकिन, इसका दूसरा पक्ष यह है कि कहीं न कहीं पटना के लोग जागरुक हैं और वो जानते हैं राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त है। इसलिए वो अपने को जोखिम में नहीं डालना चाहते हैं। यह बड़ी वजह है मतदान प्रतिशत कम होने का।