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नई दिल्ली: Farmer’s Protest: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन के 100 दिन पूरे हो चुके हैं. पिछले साल के 26 नवंबर से ही किसान हजारों की संख्या में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर अलग-अलग जगह धरना-प्रदर्शन  कर रहे हैं और केंद्र सरकार से कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. किसानों की मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी को कानून बनाने की भी है. इस आंदोलन के दौरान संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक, अलग-अलग कारणों से अब तक कुल 248 लोगों की जान जा चुकी है. किसान आज काला दिवस मना रहे हैं.

किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे होने के मौके पर किसान कुंडली-मानेसर-पलवल यानी KMP एक्सप्रेसवे पर 5 घंटे के लिए नाकेबंदी करेंगे. ये नाकेबंदी सुबह 11:00 बजे सुबह से शाम 5:00 बजे तक होगी. इसके अलावा डासना, दुहाई, बागपत, दादरी, ग्रेटर नोएडा पर किसान सड़क जाम करेंगे. सभी किसान इस दौरान अपनी बाहों पर काली पट्टी बांधकर विरोध दर्ज कराएंगे. किसानों ने कहा है कि काला दिवस के दिन एक्सप्रेसवे पर टोल प्लाजा भी फ्री कराए जाएंगे.

26 नवंबर को शुरू हुए आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने पहली बार एक दिसंबर को किसानों से बातचीत की पहल की थी. अब तक कुल 11 दौर की वार्ता किसान प्रतिनिधियों और सरकार के नुमाइंदों के साथ हो चुकी है लेकिन एक भी वार्ता सफल नहीं रही है. किसान तीनों कानूनों के रद्द कराने पर अड़े हैं, जबकि सरकार उसमें संशोधन का प्रस्ताव देती रही है. सरकार ने तीनों कानूनों को कृषि सुधारों की दिशा में बड़ा कदम करार देते हुए कहा है कि इससे किसानों को लाभ होगा और अपनी उपज बेचने के लिए उनके पास कई विकल्प होंगे

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कांग्रेस किसानों के आंदोलन का लगातार समर्थन कर रही है. मेरठ में कांग्रेस की आज किसान महापंचायत है. इस महापंचायत में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा शामिल हो सकती हैं.कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने तीन नए केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के 100 दिन पूरा होने पर शुक्रवार को कहा कि सरकार को ये कानून वापस लेने ही होंगे. उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘बीज बोकर जो धैर्य से फ़सल का इंतज़ार करते हैं, महीनों की प्रतीक्षा व ख़राब मौसम से वे नहीं डरते हैं. तीनों क़ानून तो वापस करने ही होंगे.”

तेलंगाना में भी किसान महापंचायत बुलाई गई है. इस महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत भी शामिल होंगे. राकेश टिकैत का कहना है कि दिल्ली की सीमाओं से किसान अक्टूबर तक तो नहीं हटेंगे. उन्होंने कहा कि बिना तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द कराए किसान यहां से नहीं जाएंगे.

मध्य प्रदेश के छतरपुर में भी किसानों का धरना-प्रदर्शन पिछले चीन महीनों  (87 दिनों) से चल रहा है. हालांकि, पुलिस प्रशासन ने लंबे समय तक किसानों को वहां टेंट लगाने की अनुमति नहीं दी है. इसके अलावा धरना स्थल पर प्रशासन ने कोई साधन भी मुहैया नहीं कराया है.  जब 3 और 4 मार्च को किसानों ने महापंचायत का आयोजन किया, तब प्रशासन ने उन्हें टेंट लगाने की अनुमति दी गई. किसानों ने अब आने वाले दिनों में पूरे एमपी में महापंचायत करने की योजना बनाई है.

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दिल्ली बॉर्डर बंद किए जाने के बाद 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई शुरू हुई. हालांकि, कोर्ट ने दिल्ली की सीमाओं को खाली कराने का कोई आदेश नहीं दिया लेकिन केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि तीनों कानूनों को स्थगित कर एक कमेटी बनाई जाए जो किसानों की मांगों पर विचार करे.

इसके बाद भी जब किसानों और सरकार के बीच कई दौर की वार्ता के बावजूद गतिरोध खत्म नहीं हुआ तो सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को तीनों नए कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी. इसके साथ ही कोर्ट ने चार सदस्यों की एक कमेटी बना दी, जिसे एक महीने के अंदर किसानों से बातचीत कर रिपोर्ट देने का कहा गया. किसानों ने कमेटी से बातचीत करने से इनकार कर दिया. कोर्ट की गठित कमेटी से जुड़े एक सदस्य ने अपना नाम वापस ले लिया.

26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन को ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा से मामला बिगड़ गया और ऐसा लगा कि किसान आंदोलन अब खत्म हो गया. लाल किले पर हुई हिंसा के बाद किसानों के प्रति लोगों की सहानुभूति में अचानक कमी देखी गई लेकिन राकेश टिकैत के आंसुओं ने किसान आंदोलन में फिर से जान डाल दिया. घरों को लौट चुके और लौट रहे किसान दोबारा दिल्ली बॉर्डर पर आकर डट गए. सुरक्षा बलों को भी आधी रात दिल्ली बॉर्डर पर लौटना पड़ा. इसके बाद सरकार ने दिल्ली बॉर्डर पर कीलें बिछवा दीं, जिसकी चहुंओर निंदा हुई.

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इसके बाद यूपी, राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में किसान महापंचायतों का दौर शुरू हो चुका है. अब सभी राजनीतिक दल इस पर जमकर सियासत कर रहे हैं. संसद में भी बजट सत्र में मुद्दे को उठाया गया और कृषि बिलों को वापस लेने की मांग की गई. सरकार और बीजेपी ने भी रक्षात्मक मोड अपनाते हुए कृषि कानूनों के समर्थन में कई कार्यक्रम करने शुरू कर दिए.

ब्रिटिश सांसदों द्वारा भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन के मुद्दे पर अगले सप्ताह चर्चा के कार्यक्रम के बीच ब्रिटिश सरकार ने शुक्रवार को कहा कि भारत में जो कुछ हो रहा है, उसका ब्रिटेन में असर देखा जा रहा है और भारतीय समुदाय के लोगों की बड़ी संख्या होने के कारण इसकी चर्चा भी हो रही है लेकिन किसानों का आंदोलन भारत का आंतरिक मुद्दा है और उसे ही सुलझाना है. ब्रिटेन के सांसद अगले सप्ताह सोमवार को भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा के मुद्दे पर एक ई-याचिका को लेकर चर्चा करेंगे जिस पर हस्ताक्षर करने वालों की संख्या एक लाख को पार कर गई है. हाउस आफ कामन्स में याचिका समिति ने इस सप्ताह के प्रारंभ में इसकी पुष्टि की थी.