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केंद्र सरकार ने कहा था कि देश के लोगों को परिवार नियोजन के तहत दो बच्चों की संख्या सीमित रखने के लिए मजबूर करने के वह खिलाफ है। कारण है कि इससे जनसंख्या के संदर्भ में विकृति पैदा होगी।

 

सुप्रीम कोर्ट में जनसंख्या नियंत्रण के लिए लागू करने के लिए कानूनों की व्यवहार्यता का पता लगाने को लेकर एक याचिका दायर की गई है। इसमें नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के मद्देनजर जनसंख्या नियंत्रण के कड़े कानून को लागू करने के लिए केंद्र को निर्देश जारी करने की मांग की गई है। यह याचिका आध्यात्मिक धर्मगुरु देवकीनंदन ठाकुर ने फाइल की है। इसमें उन्होंने कहा है कि नागरिकों के मूल अधिकार की सुरक्षा के लिए जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण की जरूरत है। इनका कहना है कि सभी मुश्किलों की जड़ यही समस्या है।

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केंद्र सरकार ने कहा था वह ऐसे कानून के खिलाफ

बता दें कि केंद्र सरकार ने कहा था कि देश के लोगों को परिवार नियोजन के तहत दो बच्चों की संख्या सीमित रखने के लिए मजबूर करने के वह खिलाफ है। कारण है कि इससे जनसंख्या के संदर्भ में विकृति पैदा होगी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि लोगों को बच्चों की संख्या सीमित रखने के लिए सरकार दबाव नहीं डाल सकती। इससे डेमोग्राफिक विकृतियां पैदा होती हैं। परिवार नियोजन एक स्वैच्छिक प्रवृति का कार्यक्रम है। ये लोगों की इच्छा के हिसाब से फैमिली प्लानिंग की योजना है। इसके लिए कोई जोर जबर्दस्ती नहीं की जा सकती है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि लोक स्वास्थ्य राज्य का विषय है। स्वास्थ्य से संबंधित तमाम गाइडलाइंस को लागू करने का अधिकार राज्य का है।

एडवोकेट आशुतोष दुबे के जरिए दायर की गई याचिका में कहा गया है कि नागरिकों विशेषकर महिलाओं को व्यापक तौर पर नुकसान पहुंच रहा है। अर्थव्यवस्था पर जनसंख्या विस्फोट के खतरों और इसके प्रभावों पर अक्सर चर्चा की जाती है। लेकिन, बार-बार मां बनने वाली महिलाओं के बारे में शायद ही कहीं चर्चा होती हो। याचिका में आर्टिकल 21-21ए के तहत साफ हवा, पेयजल, स्वास्थ्य और जीविका की गारंटी का जिक्र किया गया है और कहा गया है कि ये सुविधाएं तभी हर नागरिक तक पहुंच सकती है जब जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रभावी उपाय किए जाएं।