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भाजपा की मुस्लिम दुविधा पर चर्चा करने से पहले कुछ तथ्यों पर गौर करें। 7 जुलाई के बाद जब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी राज्यसभा से सेवानिवृत्त होंगे, भाजपा का संसद में कोई मुस्लिम प्रतिनिधित्व नहीं होगा।

 

एम.जे. अकबर 29 जून को सेवानिवृत्त होने वाले हैं और सैयद जफर इस्लाम का केवल दो साल का कार्यकाल 4 जुलाई को समाप्त होगा। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा का कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता।

 

लोकसभा में भाजपा का अकेला चेहरा शाहनवाज हुसैन 2014 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद बिहार में मंत्री बन गए हैं। यह उल्लेख करना भी उचित होगा कि भाजपा के पास 28 राज्य विधानसभाओं और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है। ऐसा नहीं है कि राज्य विधानसभाओं में भाजपा के पास कभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं था।

 

पार्टी के चार मुस्लिम विधायक थे- जम्मू-कश्मीर और असम में एक-एक और राजस्थान में दो। भाजपा हाल ही में संपन्न हुए द्विवार्षिक चुनावों में राज्यसभा के लिए यूपी में 8 सहित 15 राज्यों की 57 सीटों के लिए किसी मुस्लिम को नामित कर सकती थी। लेकिन उसने जानबूझकर ऐसा नहीं करने का फैसला किया।

 

भाजपा की अपनी चुनावी मजबूरियां हो सकती हैं क्योंकि उसने उम्मीदवार के चयन में ‘जीतने की क्षमता’ के सिद्धांत का पालन किया है। लेकिन सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के रास्ते पर चल रही है और दावा है कि कुल 12 लाख करोड़ रुपए की कल्याणकारी योजनाओं से सभी समुदायों को फायदा हो रहा है।

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नूपुर शर्मा की चिनगारी

 

नूपुर शर्मा प्रकरण ने भाजपा के सामने संकट खड़ा कर दिया। 27 मई को एक टीवी डिबेट में नूपुर शर्मा द्वारा विवादास्पद टिप्पणी करने के बाद शुरू में 3-4 दिनों तक कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। यह मामला एक जून को सामने आया जब उनके खिलाफ महाराष्ट्र और अन्य जगहों पर प्राथमिकी दर्ज की गई। शायद, यह उन मुसलमानों को भड़काने के लिए काफी था जो भगवा पार्टी के उदय और उनके हितों की सुरक्षा करने में विपक्ष की सामूहिक विफलता से असहज थे।

 

ज्ञानवापी मुद्दे ने उन्हें बेचैन कर दिया था और उन्हें संदेह था कि यह अयोध्या की पुनरावृत्ति हो सकती है। हालांकि भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने 31 मई को ही घोषणा कर दी थी कि काशी और मथुरा भाजपा के एजेंडे में नहीं हैं। लेकिन विश्वास की कमी थी. 3 जून को, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में कहा, ‘हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश करने की कोई आवश्यकता नहीं है; ज्ञानवापी पर अदालत के फैसले को सभी को स्वीकार करना चाहिए’। लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ और फिर शुक्रवार को कई हिस्सों में हिंसक विरोध देखा गया।

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केवल 27 लाख लोगों की आबादी वाले एक छोटे से मुस्लिम राष्ट्र कतर ने भारतीय दूत को तलब किया और कड़ा विरोध दर्ज कराया। उस दिन कतर में मौजूद उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू को कुछ शर्मनाक क्षणों का सामना करना पड़ा। उसी दिन भारतीय दूतावास द्वारा एक आधिकारिक बयान जारी किया गया था जिसमें कहा गया कि ये टिप्पणियां ‘फ्रिंज तत्वों’ द्वारा की गई थीं।

 

जाहिर है कि मोदी सरकार ने भाजपा के प्रवक्ताओं या संघ परिवार के जो अगुवा संगठन कह रहे थे, उससे खुद को पूरी तरह से अलग कर लिया। भाजपा ने नूपुर शर्मा को सस्पेंड कर दिया और नवीन जिंदल को पार्टी से निकाल दिया। लेकिन परिवार के कट्टरपंथी गुस्से में हैं और सार्वजनिक तौर पर शोर मचा रहे हैं। भाजपा अल्पसंख्यक मुद्दों पर अपने रुख को ठीक करने और धर्म को राजनीति से अलग करने के लिए संघर्ष कर रही है।


मुस्लिम उपराष्ट्रपति?

क्या नूपुर शर्मा प्रकरण के चलते भाजपा उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में सरप्राइज देगी? सत्तारूढ़ दल को इस उलझन भरे सवाल का सामना करना मुश्किल हो रहा है कि राज्यसभा में भी उसके पास मुस्लिम प्रतिनिधित्व नहीं हैं, जहां सदस्य मनोनीत होते हैं। इसलिए, एक विचार यह है कि जब राष्ट्रपति उच्च सदन में सात रिक्तियों को भरने का निर्णय लें तो कुछ मुस्लिम विद्वानों को राज्यसभा के लिए नामित किया जाना चाहिए।

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एक और संभावना जो चर्चा में है, वह यह कि भाजपा भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतार सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों में मोदी हैरान करने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं। भाजपा का मुस्लिम उपराष्ट्रपति अरब दुनिया के साथ मजबूत संबंध बनाने में मदद कर सकता है और पार्टी के कट्टरपंथियों को यह संदेश भी जा सकता है कि सरकार का अपना रास्ता है।

वर्तमान में, भाजपा के पास दो प्रमुख मुस्लिम चेहरे हैं; अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान जो पीएम मोदी की पसंद हैं। लेकिन मोदी अपने मन की बात करने के लिए जाने जाते हैं. नकवी पार्टी के वफादार और भरोसेमंद व्यक्ति हैं और कभी भी आउट ऑफ टर्न नहीं बोलते हैं। भाजपा नेता अभी भी इस बात से हैरान हैं कि नकवी को राज्यसभा का टिकट क्यों नहीं दिया गया और उन्हें लगता है कि मोदी बिना वजह कुछ नहीं करते।

और अंत में

देश के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए भाजपा की सर्च कमेटी में राजनाथ सिंह के शामिल होने से रक्षा मंत्री के रायसीना हिल्स जाने की संभावनाएं खत्म हो गई हैं। चर्चाएं यह थीं कि वे उपराष्ट्रपति पद के लिए एक अच्छी पसंद हो सकते हैं।