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उत्तराखंड राज्य पहाड़ो तक मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने के लिए बना लेकिन आज पहाड़ का आलम है कि लोग पहाड़ से पहले से ज्यादा पलायन कर रहे हैं। उत्तराखंड को बने 21 साल हो गए लेकिन पहाड़ में मूलभूत सुविधाएं अभी तक नहीं पहुंची है। गांव आज बद से बदतर होते जा रहे हैं। जिसका कारण है कि पहाड़ में पलायन रुकने की बजाय बढ़ रहा है।

अमित बिष्ट

कहते हैं पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती है। ये सिर्फ कहानी नहीं पहाड़ का सच है। पहाड़ से सरकार को पलायन को रोकने के सरकार के लाख दावों के बावजूद हकीकत एकदम जुदा है। अगर बात करें चीन और नेपाल बॉर्डर से लगे सिमांत जनपद पिथौरागढ़ की तो यहां पिछले 3 सालों में पलायन का ग्राफ घटने की बजाय लगातार बढ़ता जा रहा है। पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक यहां पहले से 41 गांव में 50 प्रतिशत से ज्यादा पलायन हो चुका है। वहीं, अब जल जीवन मिशन के ताजा सर्वे में जो आंकड़े सामने आए हैं वे बेहद चौंकाने वाले हैं इस रिपोर्ट के मुताबिक जिले में वर्तमान में कुल 1542 गांव ही आबाद हैं. जबकि 3 साल पहले तक जिले में 1601 आबाद थे।

जल जीवन मिशन के आंकड़ों के मुताबिक बीते 3 साल में जिले के 59 गांव और खाली हो चुके हैं। ये हाल तब है जब रिवर्स पलायन को लेकर सरकार तमाम तरह की योजनाएं चला रही है. उत्तराखंड राज्य बने 21 साल हो गए हैं। बीते दो दशकों में सरकार ने सीमांत जिले पिथौरागढ़ में विकास के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए लेकिन आज भी सीमांत जिलों के लोग अलग- अलग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। आज भी सीमांत के कई गांव भी सड़क नहीं है। जबकि बिजली पानी संचार, स्वास्थ्य और रोजगार के भी बुरे हाल हैं।  जिस कारण पलायन लगातार जारी है।

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वर्तमान में पिथौरागढ़ जिले में 59 गांव ऐसे हैं जहां अब कोई भी नहीं रहता यानी की ये गांव विरान हो चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 15 गांव पिथौरागढ़ तहसील के हैं।  इसके बाद 13 गांव गंगोलीहाट, डीडीहाट औपर बेरीनाग के 6-6 धारचुला के 4 गंणाय, गंगोली, पाखो और थल के 3-3 गांव शामिल है। इन गांव में अब कोई नहीं रहता हांलाकि इनमें कुछ गांव ऐसे हैं जहां आज भी खेती की जाती है। पलायन आयोग के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो पिथौरागढ़ जिले में 41 गांव ऐसे हैं जहां 50 फिसदी से ज्यागा लोग पलायन कर चुके हैं। पलायन की सबसे ज्यादा मार गंगोलीहाट विकासखण्ड पर पड़ी। गंगोलीहाट विकासखण्ड में 25 गांव ऐसे हैं जो 50 फिसदी से ज्यादा खाली हो चुके हैं। इसी तरह बेरीनाग विकासखण्ड में 12 गांव कनालीछीना और मुनाकोट विकासखण्ड में 2-2 गांव ऐसे हैं जो आधे खाली हो गए हैं।

ये बात और है कि खाली हो चुके गांव में रिवर्स पलायन के लिए सरकार कई योजनाओं को भी संचालित कर रही है। पिथौरागढ़ जिले के सिमांत क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुरा हाल है। राज्य गठन के बाद भले ही यहां अस्पतालों और चिकिस्कों की संख्या बढ़ी हो लेकिन हकीकत ये की आज भी लोग इलाज के लिए मैदानी क्षेत्रों पर ही निर्भर है। जिले में एक मात्र महिला अस्पताल है गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड के लिए क्रेडियोलोजिस्ट तक नहीं है। जिला और महिला अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों और आधुनिक इलाज के तकनिकों का अभाव है। आजादी के 75 साल बाद भी पिथौरागढ़ जिले में 40 से ज्यादा गांव सड़क सुविधा से वंचित है। इन गावों की कुल आबादी 50 हजार से ज्यादा है। ये गांव अति दुर्गम इलाकों में है इन गांवों की सड़क से दूरी 5 किलोमीटर से 27 किलोमीटर तक है। यहां जब भी कोई बीमार होता है तो डोली पर बिठाकर सड़क तक लाते हैं। लोगों को उम्मीद थी की राज्य बनने के बाद उनके गांव तक सड़क पहुंचेगी। लेकिन उन्हें मायूसी ही हाथ लगेगी। पिथौरागढ़ जिले में करीब 400 परिवार ऐसे हैं जो आज तक रोशन नहीं हो पाए सरकार की तरफ से तमाम योजनाएं चलाई जा रही है। मगर ये योजनाएं सरकारी फाइलों में दम तोड़ रही है आज भी इन परिवारों के हजारों लोग रोशनी का इंतजार कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश परिवार चीन और नेपाल बोर्डर पर स्थित दारमा और व्यास घाटी के हैं।

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पिथौरागढ़ जिले में वर्तामान में पानी की 205 योजनाएं चल रही है इसके बाद भी नगर से गांव तक पानी के लिए हाहाकार मचा रहता है। जिन इलाकों में पेयजल पहुंच गई वहां भी पेयजल की समस्या से दो चार होना पड़ता है। जबकि ग्रामिण इलाकों में हालात और भी बत्तर है। यहां लोगों की जवानी दो बूंद पानी के जुगद में बरबाद हो रही है। लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलकर प्राकृतिक जल स्रोतों से बुझानी पड़ती है। आज डीजिटल युग में भी सिमांत जनपद पिथौरागढ़ में भी 100 से ज्यादा गांव ऐसे हैं जो संचार व्यवस्था से महरुम है। यहां लोगों को संचार से जुड़ने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। यहां तक की सलेंडर बुक करने के लिए भी लोगों को 10 से 30 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। मूलभूत सुविधाओं और रोजगार के तलाश में गांव के गांव खाली हो रहे हैं। अब केवल कमजोर तबका ही गांव में टीका हुआ है। जबकि संपन लोग बेहतर सुविधाओं की तलाश में शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। गांव से जहां लोग शहरों का रुख कर रहे हैं। वहीं शहरों से लोग महानगरों की तरफ पलायन कर रहे हैं।

गांव में जो लोग अभी भी टिके हुए हैं उनका आय का मुख्य जरिया खेती और पशुपालन है. मगर जंगली जानवरों के आतंक के कारण खेती से भी ग्रामिणों का मोह भंग हो रहा है। अगर सरकार पलायन को रोकने में वाक्य में संवेदनशील है तो ग्रामिणों के आजीविका में सुधार लाने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे। अगर सरकार ओर्गेनिक खेती के साथ ही पशुपालन को बढ़ावा दें तो लोगों को अपनी जड़ों से दूर होने से रोका जा सकता है। हालांकि सरकार कई योजनाएं कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में चला रही है। मगर इन योजनाओं का लाभ प्रगतिशील किसानों को ही मिल पा रहा है जबकि कम भूमि वाले भूमिहीन किसानों को इन योजनाओं का कम ही लाभ मिल पा रहा है। गरीब तबका गांव में मेहनत मजदूरी के दम पर ही गुजर बसर करने को मजबूर है। ऐसे में कमजोर तबके को भी सामूहिक खेती और उत्पादन में शामिल करने की जरूरत है साथ ही गांव में हस्तशिल्प और लघु उद्योगों को भी बढ़ावा देने की जरुरत है।

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पिथौरागढ़ जिला प्राकृतिक पर्यटन के साथ ही धार्मिक और साहसी पर्यटन का भी केंद्र है. ऐसे में सरकार ग्रामिण इलाकों में होम स्टे को बढ़ावा देने के साथ ही धार्मिक और पर्यटन स्थलों को विकसित करें। तो ये ग्रामिणों के आजीविका को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है। बीते तीन सालों में जिस तेजी से पिथौरागढ़ में पलायन बढ़ा है उससे साफ साबित हो रहा है कि लोगों का गांव से लगातार मोह भंग हो रहा है। बेहतर सुविधाओं और रोजगार के तलाश में गांव मानवहीन होते जा रहे हैं। चीन और नेपाल बॉर्डर में लगे पिथौरागढ़ जिले में बढ़ता पलायन देश की सुरक्षा की नजरिए से एक बड़ा खतरा है। पलायन की ये व्यथा सरकारों की पर्वतीय नीति पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं। ऐसे में सरकार को अब गंभीर कदम उठाने की जरूरत है।