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मॉफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस अभिरक्षा में हत्‍या की घटना ने उत्‍तर प्रदेश की उसी कानून-व्‍यवस्‍था पर सवाल उठा दिया है, जिसकी दो दिन पहले तक वाहवाही हो रही थी।

पुलिस अभिरक्षा में किसी भी व्‍यक्ति की मौत सामान्‍य घटना नहीं है, प्रयागराज पुलिस की सक्षमता और प्रभाव पर प्रश्‍नचिन्‍ह है। पर, इससे इतर सबसे बड़ा सवाल यह है कि बदमाशों ने अतीक अहमद और अशरफ की हत्‍या क्‍यों की? इन दोनों का हत्‍या करने का उद्देश्‍य क्‍या है? हत्‍याकांड के पीछे किसी का हाथ है क्‍या?

ऐसे बहुतेरे सवाल हैं, जिनका जवाब जांच पड़ताल और हत्‍यारों से पूछताछ में सामने आयेगा, लेकिन इस हत्‍याकांड में शक की सुई आईएसआई से लेकर स्‍थानीय सफेदपोश नेता, अधिकारी और अतीक के दुश्‍मनों की तरफ घूम रही है कि किसे अतीक और अशरफ की हत्‍या से फायदा हो सकता है? किसे अतीक और अशरफ के जिंदा रहने से नुकसान था?

अतीक और अशरफ की हत्‍या करने वाले तीनों शूटर ऐसे अपराधी हैं जो अतीत में जेल जा चुके हैं। ऐसे में उनके बयान पर यह मान लेना कि तीनों शूटर, जो यूपी के अलग-अलग जिलों से आते हैं, केवल अतीक और अशरफ को उनके किये की सजा देने आये थे, मूर्खता होगी।

अतीक एवं अशरफ से पुलिस पूछताछ में पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के जरिए पंजाब में पाकिस्‍तान सीमा पर हथियारों की आपूर्ति लेने की बात सामने आई थी। अतीक ने लश्‍ कर-ए-तोइबा से संबध होने की बात भी कबूली थी। इस मामले में कल ही उससे एनआईए के अधिकारियों ने पूछताछ की थी। एटीएस अतीक एवं अशरफ को पंजाब ले जाकर उन जगहों की तफ्तीश करना चाहती थी। एटीएस पंजाब से संचालित आईएसआई के नेटवर्क को पकड़ने के बेहद करीब थी। क्‍या इस नेटवर्क के पकड़े जाने से सिंडिकेट में शामिल किसी माफिया, नेता या अधिकारी का भेद खुल जाने का डर था, जो अतीक-अशरफ की मौत के बाद टल गया?

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अतीक अहमद को कई राजनीतिक दल, सफेदपोश नेताओं एवं अधिकारियों का संरक्षण भी मिला हुआ था। इसी संरक्षण के बल पर अतीक ने दूसरे लोगों की जमीनों पर अवैध कब्‍जा करके प्रापर्टी डीलरों एवं बिल्‍डरों का एक बहुत बड़ा नेटवर्क खड़ा कर लिया था। संभव है कि इस नेटवर्क में नेताओं के साथ अधिकारियों के भी पैसे लगे हुए हों। पुत्र असद की मौत के बाद अतीक टूट चुका था, तो क्‍या ऐसे किसी दल, नेता या अधिकारी को डर था कि अब अतीक उनका राज पुलिस के सामने खोल सकता है? स्‍थानीय सत्‍ताधारी एवं विपक्षी नेताओं से भी अतीक और अशरफ के संबंधों से इनकार नहीं किया जा सकता है।

कुछ नेताओं के तो अतीक से आर्थिक संबंध होने के आरोप भी गाहे-बगाहे लगते रहे हैं। अतीक और अशरफ अहमदाबाद एवं बरेली जेल में बैठकर अपना नेटवर्क चला रहे थे, तो यह बिना किसी बड़े नेता या अधिकारी के संरक्षण के कतई संभव नहीं था! उमेश हत्‍याकांड के बाद पूरे देश में फैले अपने नेटवर्क के जरिये ही अतीक ने अपने पुत्र असद को महाराष्‍ट्र और राजस्‍थान सहित कई जगहों पर शरण दिलवाई थी, तो क्‍या अतीक-अशरफ के जिंदा रहने से ऐसे किसी सफेदपोश को अपना भेद खुल जाने का डर था? यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं कि शुरुआती जांच में तीनों शूटरों के जो पारिवारिक बैकग्राउंड सामने आये हैं, उनमें किसी की भी हैसियत लाखों रुपये के महंगे असलहे खरीदने की नहीं है।

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बेहद साधारण पृष्‍ठभूमि से आने वाले इन शूटरों के पास महंगे दाम वाली 9 एमएम इटैलियन एवं टर्किश पिस्‍टल कहां से आये? जो पिस्‍टल इनके पास से मिली है, वह पिस्‍टल क्रास बॉर्डर से ही देश में लायी जा सकती है? खासकर पाकिस्‍तानी सीमा से। अतीक गैंग के अलावा मुख्‍तार अंसारी के नेटवर्क पर भी पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी एवं आतंकी संगठनों से संबंध होने के आरोप चस्‍पा हैं। तीनों शूटरों ने जिस तरीके से अतीक और अशरफ की हत्‍या करने के बाद धार्मिक नारे लगाये, उससे भी शक पैदा होता है कि उन्होंने ऐसा किस मकसद से किया? क्‍या उन्‍होंने ऐसा किसी सोची समझी रणनीति के तहत किया? क्‍या उन्‍हें ऐसा करने के लिये कहीं से निर्देशित किया गया था? क्‍या जानबूझकर प्रदेश का माहौल खराब करने के लिए नारे लगाये गये? क्‍या ये नरेटिव सेट करने के लिये नारे लगाये गये कि एक धर्म विशेष के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों द्वारा इस सरकार में प्रताड़ित किया जा रहा है? आखिर इन शूटरों की हरकत से किसे लाभ मिल सकता था?

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अतीक और अशरफ की हत्या के बाद अगर प्रदेश का माहौल बिगड़ता है तो इससे किसका भला हो सकता है? शूटरों का यह कहना कि वह अतीक और अशरफ को मारकर अपना दबदबा बनाना चाहते थे, ये आधा सच है। दरअसल, बहुत ही गहरी तैयारी और सोच के साथ इस हत्‍याकांड को अमली जामा पहनाया गया है। छुटभैये गुण्डों या हत्यारों की इतनी हैसियत होती ही नहीं है कि वह इतनी बड़ी मछली पर इस तरह दिन दहाड़े हाथ डाल दें।

कहानी कुछ और है, इसीलिए आनन फानन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग गठित कर दिया है, जो इस हत्याकांड की जांच करेगा। क्योंकि इस हत्याकांड से न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल उठा है बल्कि योगी की माफिया विरोधी कार्रवाई को भी धक्का लगा है। एक झटके में तीन हत्यारों ने अतीक अशरफ की हत्या करके पांसा पलट दिया। पर्दे के पीछे जिन लोगों ने भी इस हत्याकांड को अंजाम दिया है वो निश्चित ही अतीक अशरफ की जुबान बंद करवाने में कामयाब रहे। लेकिन इससे प्रदेश में योगी की छवि को जरूर धक्का लगेगा और अपराधियों के खिलाफ उनकी मुहिम को भी नुकसान पहुंचेगा।