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सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की बेंच 2 जनवरी यानी आज 500 और 1000 रुपए के करेंसी नोटों पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगी।

केंद्र के नोटबंदी के 2016 के नोटिफिकेशन के खिलाफ कोर्ट में तीन दर्जन याचिकाएं दायर की गई थी। बेंच ने 7 दिसंबर को सरकार और याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाओं में तर्क दिया गया है कि डिमोनेटाइजेशन का निर्णय मनमाना, असंवैधानिक और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के तहत निर्धारित शक्तियों का दुरुपयोग किया गया था।

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सुप्रीम कोर्ट शीतकालीन छुट्टियों की वजह से बंद था और 2 जनवरी से खुल रहा है। इस बेंच की अगुवाई जस्टिस बीआर गवई कर रहे थे जो मामले में फैसला सुना सकते हैं। बेंच में जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह देखने की कोशिश की है कि क्या सरकार ने वाकई आरबीआई के नियमों का उल्लंघन किया है। कोर्ट में दायर याचिकाओं पर पांच जजों की बेंच ने यह जानने की कोशिश की सरकार ने आरबीआई एक्ट के तहत दिए गए नियमों का पालन किया गया या नहीं।

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धारा 26 (2) के तहत नोटबंदी का फैसला

सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम, 1934 की धारा 26 (2) के तहत डिमोनेटाइजेशन का फैसला किया था। प्रावधान सरकार को यह ऐलान करने का अधिकार देता है कि वे ऐलान कर सकते हैं कि “किसी भी मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की कोई भी सीरीज लीगल टेंडर नहीं होगी।”

नोटबंदी का फैसला कानून का मजाक बनाने जैसा

मामले में पांच दिन लगातार हुई सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी “निर्णय लेने की सबसे खराब प्रक्रिया” थी जिसमें त्रुटियां थी।”  चिदंबरम ने सरकार के फैसले को कानून के शासन का मजाक बनाने जैसा बताया। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह आकलन करने के लिए दस्तावेजों की समीक्षा करना जरूरी है कि फैसले से पहले आरबीआई ने इतनी बड़ी मात्रा में करेंसी की वापसी के प्रभाव पर विचार किया या नही। नोटबंदी से बताया जाता है कि लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।