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आम आदमी पार्टी (आप) ने चुनाव प्रचार के दौरान ‘मुफ्त’ बांटने का वादा करने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ जनहित याचिका का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है।

 

आप ने अपने आवेदन में कहा कि मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली और मुफ्त परिवहन जैसे चुनावी वादे ‘मुफ्त उपहार’ नहीं हैं। बल्कि यह असमान समाज में बेहद जरूरी हैं।

हमारा मौलिक आधार-आप

अर्जी में आप ने दावा किया कि उसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्राप्त है। जिसमें रैन बसेरों, मुफ्त बिजली, मुफ्त शिक्षा और मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करके गरीबों के उत्थान के लिए चुनावी भाषण और वादे शामिल हैं। आप द्वारा दायर आवेदन में कहा गया है कि मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली या मुफ्त सार्वजनिक परिवहन जैसे चुनावी वादे मुफ्त नहीं हैं। बल्कि एक अधिक न्यायसंगत समाज बनाने की दिशा में राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के उदाहरण हैं।

यह गंभीर मुद्दा-सुप्रीम कोर्ट

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस पीआईएल पर सुनवाई करते हुए कहा था कि चुनाव अभियानों के दौरान मुफ्त में बांटने का वादा करने वाले राजनीतिक दल एक गंभीर आर्थिक मुद्दा है। इस मुद्दे की जांच के लिए एक निकाय की आवश्यकता है। यह पीआईएल अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दयार की थी।

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गलत लाभ और रिश्वतखोरी-पीआईएल

याचिका में दावा किया या है कि राजनीतिक दलों के मनमाने वादे या गलत लाभ के लिए तर्कहीन मुफ्त और मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने के लिए रिश्वतखोरी और अनुचित प्रभाव के समान है। चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त का वादा या वितरण मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित कर सकता है।

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