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सहकारिता के जरिये डेयरी, राष्ट्रीय डेयरी योजना-II सरीखी तीन योजनाओं को बंद कर दिया है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने अपनी योजनाओं को 20 से घटाकर सिर्फ तीन कर दिया है। जैविक खेती की राष्ट्रीय परियोजना या राष्ट्रीय कृषि वानिकी परियोजना के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।

 

बीते तीन वर्षों में केंद्र सरकार की योजनाओं में से आधे से ज्यादा को या तो बंद कर दिया गया है या फिर उन्हें अन्य योजनाओं में शामिल कर लिया गया है। फरवरी 2022 तक केंद्र सरकार की 130 योजनाओं में से 65 में सुधार या पुनर्निर्धारण किया गया और उनमें पांच अतिरिक्त योजनाएं जोड़ी गई हैं।

सभी मंत्रालयों में इसका अलग-अलग असर पड़ रहा है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तो 19 योजनाओं में से महज तीन बची हैं-मिशन शक्ति, मिशन वात्सल्य, सक्षम आंगनवाड़ी/पोषण 2.0. इसी तरह पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने 12 योजनाओं को घटाकर सिर्फ दो कर दिया है।

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इसके अतिरिक्त मंत्रालय ने सहकारिता के जरिये डेयरी, राष्ट्रीय डेयरी योजना-II सरीखी तीन योजनाओं को बंद कर दिया है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने अपनी योजनाओं को 20 से घटाकर सिर्फ तीन कर दिया है जबकि जैविक खेती की राष्ट्रीय परियोजना या राष्ट्रीय कृषि वानिकी परियोजना के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।

निस्संदेह, कुछ लोग हैं जो मानते हैं कि सरकारी योजनाओं में कटौती एक बड़ी उपलब्धि है। वैसे हमें सवाल यह करना चाहिए कि क्या इससे बेटर गवर्नेंस के बजाय लेस गवर्नेंस की स्थिति नहीं जाहिर होती है। जो आलम है उसे देखकर यह लगता है कि भारत अब कहने को कल्याणकारी राज्य रह गया है।

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जिन योजनाओं का अस्तित्व बरकरार भी है, उनके आगे भी फंड की कटौती, संवितरण और राशि के सदुपयोग जैसी चुनौतियां हैं। जून 2022 तक केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं के लिए 1.2 लाख करोड़ रुपए बैंक में पड़े हुए थे।

सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा में सुधार और आर्थिक-सामाजिक गतिविधियों में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए परियोजनाओं के वित्तपोषण पर ध्यान देने के साथ निर्भया कोष 2013 में शुरू किया गया था। इसके लिए 2013 और 2016 के बीच सालाना 1000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया, पर इसमें से ज्यादातर पैसे का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ।

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निर्भया फंड को उसके आरंभ से वित्तीय वर्ष 2021-22 तक 6214 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, लेकिन वास्तव में केवल 4138 करोड़ रुपए ही वितरित किए और उसमें से महज 2922 करोड़ रुपए का ही उपयोग हुआ। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को 660 करोड़ रुपए का वितरण किया गया, लेकिन जुलाई 2021 तक महज 181 करोड़ रुपए का उपयोग किया जा सका। यहां तक कि किसानों को भी नहीं बख्शा गया है। उर्वरक सब्सिडी में पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरावट देखी गई है. ऐसे में हमारे किसान मजबूरन क्या हमारे शहरों की तरफ पलायन नहीं करेंगे?