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आज उच्चतम न्यायालय में किसान आंदोलन को लेकर दूसरे दिन की सुनवाई हो रही है। कल भी किसान आंदोलन को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी लेकिन फैसला नहीं सुनाया गया था। दूसरे दिन की सुनवाई में मुख्य न्यायधीश एसए बोबडे, किसानों के वकील और सरकार के वकील की ओर से क्या कहा जा रहा है…

– एमएल शर्मा ने कहा कि सभी बात करने सामने आ रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री नहीं आ रहे। इस पर कोर्ट ने कहा कि हम पीएम से नहीं कह सकते, वो इस मामले में कोई पार्टी नहीं है।

-कोर्ट ने कहा कि समिति इसलिए बनाई जा रही है ताकि इस मुद्दे को लेकर तस्वीर साफ हो, हम ये बहस नहीं सुनेंगे कि किसान समिति के सामने पेश नहीं होंगे।

– कोर्ट ने कहा कि ऐसा सुनने में आया है कि गणतंत्र परेड को बाधित किया जाएगा, ऐसे में हम समझ नहीं पा रहे कि आंदोलनकारी समाधान चाहते हैं या समस्या को और बढ़ाना चाहते हैं।

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– किसान संगठन के एक वकील ने कहा कि बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे किसान आंदोलन में हिस्सा नहीं लेंगे, उनको वापस भेजा जाएगा, जिस पर कोर्ट ने कहा कि इस बयान को रिकॉर्ड पर लिया जा रहा है।

– कानून के अमल को स्थगित करेंगे लेकिन अनिश्चितकालीन के लिए नहीं करेंगे – कोर्ट

– कोर्ट ने आगे कहा कि हम अपनी शक्तियों के अनुसार ही इस मामले को सुलझाना चाहते हैं। हमारे पास जो शक्तियां हैं, उनके आधार पर हम कानून के अमल को निलंबित और एक कमेटी गठित कर सकते हैं।

– मुख्य न्यायधीश ने कहा कि हम कानून की वैधता और आंदोलन के दौरान किसी व्यक्ति की मृत्यु होने या संपत्ति नष्ट होने को लेकर चिंतित हैं।

– मुख्य न्यायधीश एसए बोबडे ने कहा कि हम अपने अंतरिम आदेश में कहेंगे कि किसानों की जमीन को लेकर कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं होगा।

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– वकील एमएल शर्मा ने कहा कि किसानों का कहना है कि वह कोर्ट की ओर से गठित किसी कमेटी के समक्ष उपस्थित नहीं होंगे।

बीते दिन सुप्रीम कोर्ट में तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी, जिसमें कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकारा था और कहा था कि वो केंद्र सरकार के इस मुद्दे को हैंडल करने के तरीके के काफी निराश है।

कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई करने के दौरान मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा कि वो कानून पर तो रोक नहीं लगा सकते लेकिन कानून के अमल होने पर रोक लगा सकते हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि या तो आप कानून को अमल करने पर रोक लगाएं या फिर हम लगा देंगे। इसके अलावा कोर्ट ने एक समिति बनाने का भी सुझाव दिया था।

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इस पर सरकार के वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने कहा कि कोर्ट का इतिहास रहा है कि उसने संसद से पास किसी भी कानून पर कोई रोक नहीं लगाई है। इसके अलावा कोर्ट ने समिति में शामिल होने के लिए किसान संगठनों की सहमति की मांग भी की। सरकार ने सोमवार को एक हलफनामा दायर किया, जिसमें बताया गया कि वो कानून को निरस्त नहीं करेंगे।

कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकारते हुए कहा कि अगर आंदोलन में किसी तरह की हिंसा हो जाती है, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। कोर्ट ने आगे कहा कि आंदोलन में लोग मर रहे हैं और हम इसका हल नहीं निकाल रहे हैं। इसके अलावा कोर्ट ने सरकार से इसका समाधान निकालने के लिए कहा और किसानों के हित के उद्देश्य से एक समिति बनाने की बात कही।